व्यंग्य- हम तो कहते हैं
यारो जो आए जी में कह लो |कहने में कैसा डर| अपना मुंह है कुछ भी बक लें
|लोकतंत्र में रहते हैं |अपना देश वह लोकतात्रिक देश नहीं है | जहां एक बार कहने
के लिए सौ बार सोचना पड़ता है | यहाँ तो इतनी छूट
है कि सौ बार बोलकर एक बार सोचते हैं |जो जी में आया कह दिया | हर कोई
मानहानि का दावा थोडी न ठोंकता है | सामने वाले को मालूम है |आज अपन दावा ठोंकेंगे
|कल वह भी अपने ऊपर दावा ठोंक सकता है | अपना मुंह भी बेलगाम है | आपने वह गीत
सूना होगा | ‘’ कुछ तो लोग कहेंगे | लोगो का काम है कहना |’’ बस यही सोचकर बेपरवाह
से हम कुछ भी करते रहते | नतीजा हम पर छेडछाड सीटी बाजी जैसे आरोप लगे | अखबार तक
में नाम छपा |
हम तो कहते हैं साब | बिना कुछ
कहे या करे आप महानता हासिल नहीं कर सकते | हमारे बुजुर्ग बहुत कुछ कहा करते थे
|जो वे खुद नहीं करते थे वह भी |और उनमें से कुछ महान पुरुष बन गए |
कुछ भी कहते रहने का फ़ायदा यह होता
है की हम कहने के आदी हो जाते हैं | जैसे देश के राजनीतिज्ञ बकवास बातों को यूँ कह
देते हैं जैसे कहने की बात हो |
राजनीति का फंदा है गूंगा या मूक बनाकर राजनीति न करो | वरना देखकर कुत्ते
भी न भौकेंगे | दुत्कारना भी आना चाहिए और पुचकारना भी |
पिछले दिनों शहर के एक नेता ने महिला नेत्री पर कुछ अनर्गल टिप्पणीकी | हो
हल्ला मचाया महिला संगठनों ने | नेताजी के खिलाफ नारेबाजी हुई | पर वे निश्चिन्त
थे | पूछने पर बोले –‘’जो कहना था , कह दिया |’’
साहब फायदे के लिए कुछ
कहना पड़ता है | दरअसल , कुछ दिनों से मीडिया उन्हें महत्त्व नहीं दे रहा था | वे
उपेक्षित से थे | जनता में पहचान गम होती जा रही थी | इसलिए उन्होंने सोचा कुछ
कहकर लाइट में आया जाए और कह दिया | अब चार दिनों से वे लगातार छप रहे हैं |
अभी कुछ दिन पूर्व आपने न्यूज में सुना होगा | एक जज ने सुनवाई करते हुए कह दिया | महिलाओं को पति से पीटने में क्या
बुराई है | कहने की बात थी , कह दी | इसमें महिलाओं को बुरा लगा तो वे क्या करें |
हो सकता है उनके पास पति प्रताड़ित पत्नियों के मामले आते रहे हों या पत्नी
द्वारा दर्ज फर्जी मामले भी रहे हों | मामला कुछ भी रहा हो | लगता है जज साहब ऐसे
मामलों से ऊब चुके थे | सो , मन के अंदर उठी बात कह दी |
भई पिट लो | क्या बुरा है | पति ही तो है पीटने वाला | जिसे तुम परमेश्वर
कहती हो | हरितालिका व करवा चौथ में जिसे देवता मानकर देखती हो | जब तक तलाक या
सम्बन्ध विच्छेद नहीं होता उसके नाम का मांग में सिन्दूर भरती हो | एक तरफ लम्बी
उम्र की चाहत पति की | दूसरी तरफ न्यायालय में सजा दिलाने का उपक्रम | शायद यही सोचकर
जज साहब ने सलाह दी हो महिलाओं को |
इधर, मीडिया को क्या है ? मेटर चाहिए | वह तो कहने वाले का मुंह पकड़ता है |
किसी ने चूं किया उधर फूं छाप दिया |
हमारी सलाह है किआप भी मुंह में आए कही | बात मन में दबाने से शारीरिक
विकृति उत्पन्न होती है , यानी आप दब्बू बन सकते हैं या टेंशन से घिर सकते हैं |
अब तो हमारी सलाह
मानेंगे न | सलाह देना हमारिऊ आदत है |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें