व्यंग्य – लोकतंत्र में भेड़ें
जहाँ भेड़ें रहती हैं , वहीँ हाथ में लाठी लिए लोग भी रहते हैं |भेड़ों के ‘
स्वतन्त्र वन ‘ विक्सित नहीं हुए | अच्छी अर्थव्यवस्था के लिए देश में भेडो का
होना आवश्यक है | भेड़ों से सिर्फ अर्थव्यवस्था ही नहीं सुधरती बल्कि लोकतंत्र भी
सुरक्षित रहता है | उन देशों के हालात देख लीजिए , जहां भेड़ों के बजाय तानाशाह
भेड़िए व गीदड़ पाए जाते हैं | वहां लोकतंत्र हमेशा ही धुल चाटता नजर आता है |
अपना देश इन मामलों में
भाग्यशाली है कि भेड़ें पायी जाती हैं और भेडे की शक्ल में जनता भी | इसलिए यहाँ के
लोकतंत्र को आज तक कोई डिगा नहीं सका |
भेड़ें सीधी – सादी प्राणी है , उन्हें एक बार रास्ता
दिखा दो , वे एक के पीछे एक आँख मूंदकर नाक की सीध पर चली जाती है | बार-बार
उन्हें लाठी दिखाकर रास्ते में लाने की जरुरत नहीं | एक बार हाथ में लाठी देख ली ,
भय के लिए बस उतना ही पर्याप्त है |
भेंडे संतोषी जीव है | शायद
वे भी इस देश के तथाकथित धर्मावालाम्बियों की तरह पाप-पुण्य धर्म-कर्म पर विशवास
करती हैं| यूँ तो वे मिल-बांटकर खाना पसंद करती है पर उनका चारा दूसरा प्राणी भी
खा ले , यहाँ तक कि आदमी भी तो भी चुपचाप ताकती रहती है | बेचारी इतनी शांत मिजाज
की होती है कि अपनी स्वार्थ पूर्ती के लिए कोई उनकी खाल भी उधेड़ दे या जैसा चाहे ,
वैसा ‘’ दूह ले , फिर भी ‘’ उफ़’’ किए बगैर चुपचाप
आंसू बहाकर रह जाती है |
उन पर होते जुल्म पर
प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए एक भेंड ने दूसरी से कहा ‘’ देख तो, अफसर सरकारी
कर्मचारी उद्योगपति कहे जाने वाले भेडिये व गीदड़ जब चाहें, तब हमारी खाल खीचते
रहते हैं, हमारी उन निकालते रहते हैं पर अपन लोग मूक बने सब कुछ सहते रहते हैं |
विद्रोह क्यों नहीं करते ?’’
‘’ देख री , इनके हाथों में
लाठी, बन्दूक आधुनिक अस्त्र-शास्त्र व क़ानून है | अपन ने ज़रा भी कुछ ऐसा-वैओसा
किया तो ये दबंगता के दम पर हमें कसाइयों के हाथ, सौप देंगे | इसलिए खामोशी की
परम्परा को नियमित मानकर ही जीयें , इसी में अपना जीवन सुरक्षित है |’’
भेड़ो के कारण ही भेड़ियों की
अर्थव्यवस्था कायम है | स्विस बैंक में खाते खोलने का अधिकार इन रक्त पिपासुओं को
है | भेड़ों ने भी सोचा कि वे भी अपने मान-सम्मान के लिए स्विस बैंक में खाते खोलें | उन बेचकर आई
आमद में टैक्स चोरी करके स्विस बैंक में छिपायें | पर उनकी उन की कीमत इतनी गिरा
दी गई कि वे खाते खोलने के काबिल भी नहीं रहीं | कुछ ने इस पर भी हिम्मत दिखाई तो
उन्हें राजधानी ने आँख दिखाकर भगा दिया |
कुछ ने उन की कीमत गिरने से व्याथित होकर आत्महत्या कर ली |
भेड़ों को धुप , प्यास ,
पानी , गंदगी , बीमारी व लाचारी सहने की जैसे आदत सी पड़ गई है | वे इस घिनौने
माहौल में बने झुग्गीदार ‘’ सार’’ में भी खुश है | कहती है, ‘’ हमारा सुख इसी में
सुरक्षित है |’’
सरकार से उन्हें शिकायत है
कि उनकी हितैषी व विकासशील योजनायें अजगरों के हाथों में सौप दी जाती है , जिसे वे
निगल जाते है | अगर किसी भेड़ ने नेतागिरी के मायने में चूं-चापाक का साहस दिखाने
की कोशिश की तो उसके अस्थि-पिंजर तक का सबूत नहीं मिलता |
इस देश में किस्म-किस्म की
अपराधिक घटनाओं की शिकार होती आ रही है भेड़ें | बलात्कार , लूट ह्त्या , जालसाजी
से जूझती ये भेड़ें गुंडे- मवालियों से कैसे जूझें ? हिंसक जीव कहते हैं कि भेड़ें
गठीले बदन के साथ ‘’ सेक्सी ‘ भी होती है | इसलिए थाणे में रिपोर्ट दर्ज कराने में
भी हिचकिचाती है | कारण कि वहां भी लार टपकाते कुत्ते उन्हें नोचने को बेताब रहते
है | ऐसे में बेचारी भेंड़े अबला की भाँती आंसू के घूँट पीकर अन्दर ही अन्दर घुटती
रहती हैं |
अभी कुछ माह पूर्व हिंसक
विचारधारा के लोगों ने उनकी घास-फूस वाली बस्तियों में आग लगाकर सैकड़ों भेड़ों की
ह्त्या कर डी थी | बाद में पता चला कि लोकतांत्रिक चुनाव में उन्होंने
प्रत्याशियों के बहिष्कार का साहस दिखाया था | हालांकि चुनाव के वक्त जूझना ही
पड़ता है भेड़ों को |मूर्ख कही जाने वाली भेड़ों को खरगोशी विचारधारा वाली स्वयंसेवी
संस्थाओं ने समझाया, ‘’ देखो, शिक्षा ग्रहण कर जागरूक बनो | आजकल तो हर जगह पर
स्कूलों की व्यवस्था है |’
पर वे टाल गई और बोली,- ‘’
पेट का जुगाड़ पूरा करने से फुर्सत मिले तो कुछ सोचें न ! इस रेतीली व्यवस्था में
पेट के लिए दाल-रोटी का जुगाड़ करना ही सबसे कठिन काम है |’’
हालांकि भेड़ें अपनी मूर्खता पर कायाम है | उनकी नस्लों
में सुधार के प्रयास जारी है मगर भ्रष्ट व्यवस्था में वे सच्चाई के कितने मायने
समझाने की कोशिश करेंगी , यह तो वक्त ही बताएगा |
सुनील कुमार ‘सजल’’
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