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सोमवार, 14 सितंबर 2015

व्यंग्य - आओ चिड़िया बचाएं


     व्यंग्य आओ चिड़िया बचाएं

बात बीते ग्रीष्म की है |बात कुछ ऎसी है | शहर में चिड़िया बचाओ अभियान की शुरुवात ही |जगह –जगह बैनर, पोस्टर ,पम्पलेट चस्पा किये गए थे | यह अभियान था अभियान की तरह |हिस्सेदारी निभाने वालों में ज्यादातर कालोनी के महिलाएं व पुरुष ,बच्चे शामिल थे | आम आदमी रूचि ले रहा था मगर गंभीरता से नहीं | मजदूर वर्ग तो पेट की चिन्ता में लगा था | ‘’ ऐसा अभियान तो बड़े लोगों के चोचले हैं ‘ ऐसा कहकर |
   अभियान अच्छा था | आखिर पक्षी भी तो हमारे बीच के सदस्य हैं | प्रकृति के श्रृंगार हैं |
 अभियान की शुरुवात यूं हुई साब | अखबारों में विज्ञापन छपे –‘आओ चिड़िया बचाएं | गम होते प्रकृति के सौन्दर्य को बचाएं |
 विज्ञापन का प्रभाव | लोगो में उत्साह जागा| बैठकें  हुई | लोग मिलते तो एक ही चर्चा – आओ चिड़ियाँ बचाएं पर |
  कुम्हारों के पास मिट्टी के टकोरे ( कटोरानुमा पात्र ) के आर्डर दिए जाने लगे | कुम्हार भाइयों की चटक आयी | दस के टकोरे पंद्रह रुपये में बिकने लगे | टकोरों में पक्षियों के लिए इस भीषण गरमी के दौर में पानी और अनाज रखना था | यह अभियान तो अभियान था | वह भी जेब से खर्च करने वाला अभियान | कितना सफल होता है वक्त बताएगा |
   वे हमेशा की तरह सुबह-सुबह मिले | बोले – भाई जी टकोरे ले आए | हमने हाँ में सहमति दी |
‘’ फिर आज रख रहे हों टकोरे |’’वो तो रखेंगे साब |’
 ‘बड़ा पुण्य मिलेगा साब |’’
‘ यार तुम हर काम को पुण्य -पाप के नजरिए से क्यों देखते हो |’
‘’ भाई , अपन सुबह से शाम तक में न जाने कितने पाप करते हैं | कम से कम इसी बहाने कट जाएँ बस इसीलिए...|’’
‘ खैर छोडिये  इन बातों को | मगर एक काम जरूर करिए |’’
‘’ क्या?’’
‘’अपने घर में पिंजरे में जो पक्षी कैद कर रखे हैं न, उन्हें उड़ा दीजिए |’
‘ आप भी गजब करते हो | हमने पालने के लिए लाया है | इससे घर की शोभा बदती है |’’
‘शोभा बढानी है तो कृत्रिम पक्षी ले आईये | उनसे सजाईये घर को | रही बात चिड़िया पालने की | चिड़िया बचाओ अभियान तो सम्पूर्ण पृथ्वी जगत के पक्षियों के पालने का अभियान ही तो है | ‘’
वे खीझ उठे | बोले – आपसे कौन बहस करे |’ और वे बढ़ लिए ....|
हमने देखा चिड़ीमार भी जो चिड़िया जैसे बटेर, तीतर का मांस शौक से खाते हैं | इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे |
 हमने कहा-‘’ चलो सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को तो जा रही है | ‘
 वे चिढ गए – यार तुम्हारी आदत है क्या औरों पर व्यंग्य करने की |
‘’ भाई बुरा न माने | अगर अगर आप जैसे लोग अपनी बन्दूक से निकली छर्रे नुमा गोली सेपक्षियों को मारकर इनके मांस का रस्वादन न करते तो आज जो इतनी कम संख्या में पक्षी दिख रहे हैं ,इससे कहीं ज्यादा दिखते |’’ हमने कहा |
वे बोले-‘’ दुनिया मांस की शौक़ीन है | लोग मुर्गियां पालते हैं तो क्या उसकी पूजा करते हैं | उसको भी तो भोजन बनाते हैं |’’
‘’ यानी आप इस अभियान से इसलिए जुड़े हैं | ताकि इनकी संख्या बची रहे | आपका स्वाद बरकरार रहे |’
अबकी बार उनके अन्दर खीझ ज्यादा थी |बोले-‘’ ‘’ तुम जो पंडित बनाते हो खुद वैसे नहीं हो | चुपके-चुपके अंडे का आमलेट खाते हो | यानी चित भी मेरा पट भी मेरा  | ‘’
      पिछले साल पितृ पक्ष में लोग कौए के दर्शन के लिए तरस गए थे |एक ने तो यहाँ तक कह दिया था – अब तो ऐसा लगता हैऊ पिटर भी न तर पाएंगे |’’
 ‘’ काहे?’’
 ‘’ इन कौए के रूप में ही तो आते वे |’’
       अभियान  जोरो पर था | कॉलोनी की महिलाएं हाथ में टकोरे लिए अपने घर के छतों पर रख रही थीं | पड़ोसनों से बता रही थीं | ‘’ हमने तो रख दिए टकोरे | बड़ी देर से इन्त्जारकर रहे हैं एकात पक्षी आकर जल व अन्न में चोंच मार कर जाता और हम वीडियो रिकार्डिंग कर लेते | पर सौरे न जाने कहाँ मर गए हैं |’
‘’ आते ही होंगे | हो सकता है गाँव के आसपास के जंगल वंगल में चले गए होंगे |’’
‘’ इन नालायकों को कैसे समझाएं कियहाँ कितना बड़ा अभियान चल रहा है उनके हित में | इधर का शुद्ध काना चाहिए न उधर कीड़े – मकोड़े चुगने गए हैं |’’
‘’ क्या करें दीदी पक्षी हैं |
‘’ वो तो ठीक  है | अब तू ही बता न अपन कॉलोनीवासियों ने कितना खर्च कर दिया | इन पक्षियों के पीछे | कल हमने नया हेन्दीकैम भी खरीद लाया | ताकि रिकार्डिंग कर सकें |’मीडियावालों को क्या दिखाएँगे | कल ही जलता संसार का संवाददाता बता रहा था | टकोरे में अनाज चुगते व पानी पीते पक्षियों की फोटो प्रतियोगिता आयोजित करने जा रहा है | इस हेतु पच्चीस हजार का इनाम रखा गया है |हम कैसे अखबार को भेजेंगे फोटो |’’
‘’ मेरे दिमाग में एक खूबी है |’’
‘’ रश्मि दीदी के यहाँ दो चिड़िया पिंजरे में पाली हैं |उन्हें कहते हैं टकोरे के पास लाकर छोड़गें | जैसे ही वे दाना चुगने के लिए टकोरे में चोंच लगायेंगे अपन फोटो खींच लेंगे |’’
‘’’’ अगर वे उड़ गयीं तो .. रश्मि अपने बारह बजा देगी | फिर वह काहे देगी , जैसा अपन दिमाग चला रहे हैं || उसका दिमाग पहले ही चल गया होगा | वे फोटो ले चुकी होंगी |’
‘’ अच्छा एक काम और कर सकते हैं | एकात कृत्रिम सेम टू सेम पक्षी जैसा दिखने वाला मॉडल लाते हैं | और उसके सहारे फोटो ले लेते हैं |’’
‘’ असली व नकली में फर्क नहीं कर पाएंगे का मीडियावाले | जो लोगो की आए दिन बखिया उधेड़ने में लगे रहते हैं |’’
‘’ अब बता न का करें | मेरी बुद्धि कम नहीं कर है |’
‘’ धुप में बैठकर पक्षियों  का इंतज़ार.........|’’
  सुनील कुमार ‘सजल’’




शनिवार, 12 सितंबर 2015

व्यंग्य- साहब का हिन्दी प्रेम


व्यंग्य- साहब का हिन्दी  प्रेम

इन साहब को अच्छी हिन्दी  सीखने का शौक लगा है |अच्छी हिंदी सीखने के पीछे का रहस्य यह है किउन्हें अच्छी हिन्दी  आती नहीं |वैसे वे हिन्दीभाषी क्षेत्र में पैदा हुए हैं पर न जाने क्यों |हिन्दी शीखाने को तरस गए |                         
     साहब को मराठी ,तमिल, अंग्रेजी अच्छी तरह आती है पर हिन्दी नहीं आती | ऐसा साहब कहते हैं |   साहब की दृष्टि में हिन्दी व् साली में ज्यादा फर्क नहीं है | वे कहते कहते हैं , जैसे वे आज तक अपनी साली का स्वभाव नहीं समझ पाए | वैसे ही हिन्दी को |
      साहब की मम्मी अहिन्दी भाषी है | उनकी मां को मम्मी का संबोधन हमने इसलिए दिया , क्योंकि उन्हें हिन्दी से वैसे ही नफ़रत रही है , जैसे आधुनिक महिलाओं को माथे पर लगायी जाने वाली बिन्दी से |
      हमारे साहब के बच्चे कान्वेंट में पढ़ते हैं | पर साहब का हिन्दी से ऐसा मोह है कि वे हांडी में हस्ताक्षर करते हैं | हमें तो लगता है वे हिन्दी की चापलूसीवश  हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं | वैसे हिन्दी के क्षेत्रों में अधिकाँश अवार्ड चापलूसी पर ही मिलते हैं | यूं तो उनकी जुबान में ज्यादातर अंग्रेजी शब्द ही बसते हैं | साहब का हिन्दी शीखाने का शौक प्रबलता पर है | इस हेतु वे नाना प्रकार के शब्दकोश भी बाजार से उठा लाए हैं |
    वैसे हमने सूना किउनकी पत्नी कवियित्री है | हिन्दी में कवितायेँ लिखती हैं | कविताओं की जतिलाताएं उनकी समझ में नहीं आती | अखबार वाले पत्नी की कवितायें छाप रहें हैं | मांग-मांगकर छपते हैं | वे ऐसा किस दबाव या स्वार्थ में करते हैं यह तो अखबार वाले ही जानें |
     पिछले दिनों उच्च कार्यालय से हिन्दी दिवस मनाने के आदेश प्राप्त हुए | साहब चिंतित थे हिन्दी में भाषण देने को लेकर | वह भी शुध्द हिन्दी में | उनकी जुबान आमतौर पर अंग्रेजी ही बोलती है | उन्हें डर है | भाषण के दौरान अंग्रेजी उनकी जुबान पर न आ जाए , सीमा पर घुसपैठिए की तरह |
     साब ने शर्मा बाबू को बुलाकर कहा-‘’ यार, शर्मा आप तो ब्राम्हण हो | हिन्दी, संस्कृत का अच्छा ज्ञान रखते हो | हमारे लिए हिन्दी दिवस पर एक शानदार भाषण तैयार करो |’’
   ‘’क्या लिखें साहब |’’
  ‘’ हिंदी की बढ़ोतरी के लिए मस्केबाजी , और क्या |’’
  ‘साहब अपन तो फाइलों में कीड़े की तरह रेंगते रहते हैं |अच्छा यह है सर किआप गुप्ताजी से लिखवा लें | वे अच्छे व्यंग्यकार भी हैं पर साहब मदम तो स्वयं लेखिका हैं | उनसे क्यों नहीं लिखवाते आप |’’
  ‘’ यार वह सिर्फ कवितायें लिखती हैं और जो लिखती हैं वह मेरे सर के ऊपर से गुजरता है | ‘’ साहब ने कहा |
  साब ने गुप्ताजी को बुलाकर भाषण लिखने का प्रस्ताव रखा | वे टालमटोल कर गए –‘’ ‘’ साब मैं भाषण नहीं लिखता | सिर्फ व्यंग्या लिखता हूँ | आप कहें तो लिख दूं |’’
   ‘’सर पर बचे बाल को भी उड़ाना चाहते हो ?’’
    गुप्ताजी तुरंत खिसक लिए |    हिंदी दिवस करीब आ रहा है | साहब चिंतित हैं | भाषण को लेकर | देखते है किसका लिखा भाषण पढेंगे | स्वयं का या पत्नी का, यह तो उसी दिन पता चलेगा |
                सुनील कुमार ‘’सजल’’