लघुकथा –पति
उसकी उम्र पचास को छू चुकी थी |महीना भर पहले ही उसे लकवा मार गया था
| सो वह अपंग बना खाट पर पडा दिन गुजार रहा था परन्तु पत्नी को उसकी पीड़ा पर तनिक
भी दुःख न था |
लोग उसे समझाने आते , ‘’ पति
है, ऐसे वक्त पर उसकी सेवा करो | पति तो देवता तुल्य होता है |’’
लोंगो की समझाइश सुनते –सुनते
लंबे समय तक पति के जुल्म से दबी – कुचली पत्नी के अन्दर की चीख एक दिन मुंह से
बाहर निकल आई , ‘’ जब यह स्वस्थ था, जवान था , तब इसने मुझ पर जानवरों की तरह
जुल्म ढाए | मुझे टुकड़ा भर रोटी के लिए भी इसने तरसा – तरसाकर रहा | तब आप लोग कहते थे कि पति तो देवता है ,
जैसा भी है , उसके साथ निबाहकर जीवन गुजारो और अब यह अपने कर्मों का दंड भुगत रहा
है तो आप लोग कह रहे है कि इसकी सेवा करो क्योंकि पति देवता तुल्य होता है | मैं
आप लोगों से पूछती हूँ कि पति देवता तुल्य होता है तो मैं उसकी पत्नी हूँ , ऐसे
में मैं क्या हूँ ? गुलाम या देवी ?’’
उस दिन से लोग खामोश होकर उसे
समझाइश देना भूल गए |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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