गुरुवार, 12 नवंबर 2015

लघुकथा – लक्ष्मी प्रतिष्ठा

लघुकथा – लक्ष्मी प्रतिष्ठा

महेश की शादी को तीन-चार दिन ही बचे थे कि अचानक उसके घर वालों को खबर मिली | उसकी मंगेतर दो-तीन पूर्व ही अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गयी | अत: शादी निरस्त ही समझी जा रही थी |
यह खबर सुनकर महेश बहुत उदास था, साथ ही उसकी मां भी | लेकिन उसके पिताजी के चहरे पर उदासी का कोई भाव नजर नहीं आ रहा था | वे लान में बैठे महेश को समझाते हुए कह रहे थे |’’ सुनो बेटा , जो हुआ , अच्छा ही हुआ | अगर लड़की शादी के बाद घर छोड़कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाती तो क्या समाज में हमारी नाक सेफ रहती ?’’
    महेश को पिताजी की बात समझ में आ गयी | वह इसे एक बुरा हादसा मानकर सामान्य हो गया  |
      अब महेश के पिता जी अपनी समझाइश का मस्का उसकी मां को लगाया , ‘’ देखो शीला , लड़की भागी तो भागने दो | महेश के लग्न में मिली मोटरसाईकिल ,रुपया और गहने , ये सब कुछ तो अपना ही हो गया न ! लड़की का बाप अब किस मुंह से अपने से बात करेगा .....|’’
   पिताजी की बातों ने मां के घावों पर भी मरहम का काम किया | वह अपने अन्दर से फूटे ख़ुशी के झरने को रोक नहीं पायी  , ‘’ काश! ऐसा रिश्ता अपने छोटे बेटे को भी मिल जाए तो अपने समाज में ‘’ लक्ष्मी प्रतिष्ठा ‘’ के मामलों में हम एक पायदान और ऊपर.......|

     सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

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