लघुकथा – लक्ष्मी प्रतिष्ठा
महेश की शादी को तीन-चार दिन ही बचे थे कि अचानक
उसके घर वालों को खबर मिली | उसकी मंगेतर दो-तीन पूर्व ही अपने प्रेमी के साथ घर
से भाग गयी | अत: शादी निरस्त ही समझी जा रही थी |
यह खबर सुनकर महेश बहुत उदास था, साथ ही उसकी
मां भी | लेकिन उसके पिताजी के चहरे पर उदासी का कोई भाव नजर नहीं आ रहा था | वे
लान में बैठे महेश को समझाते हुए कह रहे थे |’’ सुनो बेटा , जो हुआ , अच्छा ही हुआ
| अगर लड़की शादी के बाद घर छोड़कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाती तो क्या समाज में
हमारी नाक सेफ रहती ?’’
महेश को पिताजी की बात समझ में आ गयी | वह इसे एक बुरा हादसा मानकर सामान्य
हो गया |
अब महेश के पिता जी अपनी समझाइश का मस्का उसकी मां को लगाया , ‘’ देखो शीला
, लड़की भागी तो भागने दो | महेश के लग्न में मिली मोटरसाईकिल ,रुपया और गहने , ये
सब कुछ तो अपना ही हो गया न ! लड़की का बाप अब किस मुंह से अपने से बात करेगा
.....|’’
पिताजी की बातों ने मां के घावों पर भी मरहम का काम किया | वह अपने अन्दर
से फूटे ख़ुशी के झरने को रोक नहीं पायी , ‘’ काश! ऐसा रिश्ता अपने छोटे बेटे को भी
मिल जाए तो अपने समाज में ‘’ लक्ष्मी प्रतिष्ठा ‘’ के मामलों में हम एक पायदान और
ऊपर.......|
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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