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शनिवार, 7 मई 2016

लघुकथा -प्रतिष्ठा

लघुकथा  -प्रतिष्ठा

‘’ सरकारी स्कूल....! हूं....!मैं तो भूलकर भी तुम्हारी तरह अपने बच्चों का एडमिशन किसी सरकारी स्कूल में नहीं करा सकती |’’ शीला ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए अपनी सहेली से कहा |
‘’ पर शीला एक बार ज़रा उस स्कूल के रिजल्ट की तरफ भी तो देखो...| बोर्ड परीक्षा में पांच छात्रों ने मेरिट में स्थान बनाया है और दर्जन भर फर्स्ट डिविजन हैं ...|’’ राधा ने शीला को समझाते हुए कहा |
‘’ तो क्या हुआ...? अरे लोग पूछेंगे तो हम पर हसेंगे ही ना... कि हर तरह से सक्षम होते हुए भी हम गरीबों की तरह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं ....| सक्षम होते हुए भी हम अपने बच्चों का एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में नहीं करा सकते थे ...| यहाँ तो समाज में प्रतिष्ठा का सवाल है ......आखिर हम कमाते किसके लिए हैं ....?’’
शीला के इस तर्क पर आखिर राधा को चुप रहना ही पड़ा |


   सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

गुरुवार, 12 नवंबर 2015

लघुकथा – लक्ष्मी प्रतिष्ठा

लघुकथा – लक्ष्मी प्रतिष्ठा

महेश की शादी को तीन-चार दिन ही बचे थे कि अचानक उसके घर वालों को खबर मिली | उसकी मंगेतर दो-तीन पूर्व ही अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गयी | अत: शादी निरस्त ही समझी जा रही थी |
यह खबर सुनकर महेश बहुत उदास था, साथ ही उसकी मां भी | लेकिन उसके पिताजी के चहरे पर उदासी का कोई भाव नजर नहीं आ रहा था | वे लान में बैठे महेश को समझाते हुए कह रहे थे |’’ सुनो बेटा , जो हुआ , अच्छा ही हुआ | अगर लड़की शादी के बाद घर छोड़कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाती तो क्या समाज में हमारी नाक सेफ रहती ?’’
    महेश को पिताजी की बात समझ में आ गयी | वह इसे एक बुरा हादसा मानकर सामान्य हो गया  |
      अब महेश के पिता जी अपनी समझाइश का मस्का उसकी मां को लगाया , ‘’ देखो शीला , लड़की भागी तो भागने दो | महेश के लग्न में मिली मोटरसाईकिल ,रुपया और गहने , ये सब कुछ तो अपना ही हो गया न ! लड़की का बाप अब किस मुंह से अपने से बात करेगा .....|’’
   पिताजी की बातों ने मां के घावों पर भी मरहम का काम किया | वह अपने अन्दर से फूटे ख़ुशी के झरने को रोक नहीं पायी  , ‘’ काश! ऐसा रिश्ता अपने छोटे बेटे को भी मिल जाए तो अपने समाज में ‘’ लक्ष्मी प्रतिष्ठा ‘’ के मामलों में हम एक पायदान और ऊपर.......|

     सुनील कुमार ‘’सजल’’