लघुव्यंग्य
–प्रत्युत्तर
एक बाप
महाविद्यालय की राजनीति में लिप्त अपने बेटे को हिदायत देते हुए कहा-बेटे अब तुम
राजनीति करना छोडो और पढाई में मन लगाओ |इसी में तुम्हारा भला है |’’
‘’
नहीं पापा.. मैं राजनीति नहीं छोड़ सकता ... कालेज में दाखिला लेना तो मेरे लिए
मात्र पढाई का बहाना रहा है | मैं करूंगा तो राजनीति ही ...|’’
‘’
क्या बक रहे हो ... देखते नहीं राजनीतिज्ञों को लोग कैसी –कैसी गालियाँ और बददुआयें
देते हैं |’’
अभी पिताजी की डपट पूरी भी नहीं हो पायी थी की
बेटे ने बात काटते हुए कहा –‘’लेकिन वक्त आने पर लोग उनके ही पैर टेल गिरते हैं
... फिर भी बुरे....?
गुस्से
तमतमाया पिटा खामोश होकर रह गया |
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