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शनिवार, 6 मई 2017

बात की बात – प्रत्युत्तर

बात  की बात – प्रत्युत्तर
‘’ तुम एक सभ्य  व संस्कारित  घराने के लडके होकर भी हमेशा दूसरों की आलोचना करते व झूठी बातों  को महत्व  देते हुए मिलते हो | तुम्हारी यह आदत ठीक नहीं है | अपनी आदत में सुधार लाओ | ‘’ एक अधेड़ से व्यक्ति ने १८-१९ वर्षीय युवक को डपटते हुए कहा  |
‘’नहीं ला सकता अंकल|’’ उसने मुस्कराकर जवाब दिया |
‘’ क्यों ? ऐसी क्या मजबूरी है ?’’
‘’ मुझे एक सफल राजनीतिज्ञ जो बनाना है |’’
               सुनील कुमार ‘’सजल’’

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

लघुव्यंग्य –प्रत्युत्तर

लघुव्यंग्य –प्रत्युत्तर
एक बाप महाविद्यालय की राजनीति में लिप्त अपने बेटे को हिदायत देते हुए कहा-बेटे अब तुम राजनीति करना छोडो और पढाई में मन लगाओ |इसी में तुम्हारा भला है |’’
‘’ नहीं पापा.. मैं राजनीति नहीं छोड़ सकता ... कालेज में दाखिला लेना तो मेरे लिए मात्र पढाई का बहाना रहा है | मैं करूंगा तो राजनीति ही ...|’’
‘’ क्या बक रहे हो ... देखते नहीं राजनीतिज्ञों को लोग कैसी –कैसी गालियाँ और बददुआयें  देते हैं |’’
  अभी पिताजी की डपट पूरी भी नहीं हो पायी थी की बेटे ने बात काटते हुए कहा –‘’लेकिन वक्त आने पर लोग उनके ही पैर टेल गिरते हैं ... फिर भी बुरे....?
गुस्से तमतमाया पिटा खामोश होकर रह गया |