बात की बात – गम
‘’ साले इतनी छोटी उम्र में नशा करते तुझे शर्म नहीं
आती |’’ थानेदार ने उसके गाल पर थप्पड़ जमाते हुए पूछा |
‘’का करें साब मजबूरी है |उसने मिमियाती आवाज में
कहा |
‘’काहे की मजबूरी बे ?’’
‘’ गम भुलाने की |’’
‘’किस बात का गम बे किसी छोरी का |’’
‘’जी नहीं साब | मां-बाप का |’’
‘’ का वे मर गए हैं....|’’
जी नहीं |’’
‘’तो काहे का गम बे |’’
‘’ साब वे खुद अपना गम भुलाने के लिए नशे में डूबे
रहते हैं | मेरा ख्याल तक नहीं रखते |इसलिए मैं भी उनका गम भुलाने के लिए....|’’
‘’
सुनील कुमार ‘’सजल’’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें