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मंगलवार, 9 जून 2015

व्यंग्य- उल्लू का दर्द


व्यंग्य- उल्लू का दर्द




 सरकार की पेंदी दो दिशाओं में लुडकती है | पहली दिशा में वह चुनाव जीतकर सत्ता में बैठने के बाद | और दूसरी दिशा में चुनाव के करीब आने के संकेत पर |
  अभी पिछले दिनों सरकार की पेंदी जिस दिशा में लुढ़की थी | वह चुनाव करीब आने का संकेत था | दूसरी दिशा में सर्कार का लुढ़कना जनता के हित में होता है | वह इस वक्त जनता की होती है |
  फिलहाल सरकार जनता की हो चुकी थी | भ्रष्टकर्मियों पर आफत आ पड़ी थी | हालांकि वे सतर्क थे | पर शासन या प्रशासन में चूक का महत्त्व होता है | आखिर वे भी तो इंसान हैं और इंसान गलतियों का पुतला होता है | पुतला तो अंगुली के इशारे पर चलता था | अभी तक वह सरकार की अंगुली पर था |
  भ्रष्टकर्मियों पर आफत आयी तो उसकी काली कमाई पर छापे पड़ने लगे , जो अभी तक जनता के लिए आफत बने थे | सर्कार जनता के साथ थी | इसलिए वह भ्रष्टाचार निरोधक व्यवस्था से छापे डलवा रही थी | बदनाम सरकारें छवि का कालिख ऐसे ही कर्मों से साफ़ करती है | साथ ही जनता की आवाज पर ध्यान देती है | जो विपक्षियों के संग मिलकर भ्रष्टाचार के खिलाफ नारेबाजी कर रही होती है | सोयी सरकार को जागना पड़ता है | ऐसी चीख पुकार से | जनता के संग सुर मिलाने वाले विपक्षी सोते कहाँ हैं | विपक्ष में बैठने पर वैसे भी आँखों की नींद व दिल का चैन गायब रहते हैं | अब क्या करें विपक्षी ? ट्रस्ट जनता के संग हो लेते हैं | अपनी त्रासदी उगलने के लिए |
जनता को भी जरुरत होती है हाथ में लाठी व माइक लिए नेतृत्वकी | सो, वह उसके पीछे –पीछे भेड़की तरह चलती है | जनता की किस्मत अच्छी है कि उसे ऐसा नेतृत्व चुनाव के वक्त तो मिल जाता है |
 भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वर तेज थे | भ्रष्टाचार के खिलाफ छापे पद रहे थे | रिश्वत खोर पकडे जा रहे थे | छवि का कमाल देखी | अदना –सा कर्मचारी भी करोडपति निकल रहा था | जिसने सरकारी खजाने के पेंच ढीले कर रखे थे | हालांकि पिछले वर्षों में सरकार के पास धन की कमी नहीं थी | वह योजनाओं के लिए धन पानी की तरह बहा रही थी | योजनायें कागजी नाव थी | इस बहाव में बह रही थी | या कहें जनता के आँखों के सामने डूब रही थी | सरकार अपने मुंह मिट्ठू बन रही थी | होर्डिंग / विज्ञापन / पोस्टर / प्रचार फिल्मों में सरकार योजनाओं के साथ मुसकरा रही थी | जनता रो रही थी ढूंढ रही थी योजनाओं को | वह आपस में पूछती –‘’ कहीं देखा आपने अमुक योजना को |’’ अपनों से जवाब मिलता –‘’ कहीं तो होगी | तभी तो विज्ञापनी गुणगान जारी है |’’ पड़ते छापों की भी अपनी विशेषता थी | बिना विशेषता के शायद सरकारी काम काज नहीं होते | विशेषता भोली जनता के बाहर थे | जनता भोली होती है , इसलिए वह जनता होती है |
   छापे केवल सरकारी कर्मियों के कुकर्मों पर पड़ रहे थे | जनता वास्तव में भोली है | उसे इतनी भी समझ नहीं भ्रष्टाचार का खेल केवल क्या अर्कारी कर्मचारी ही खेलते हैं ? वे नहीं खेलते जो उनके सिर पर अपने राजनैतिक हस्त की छात्र छाया बनाकर रखते हैं |
    जनता भूल भुलैया में थी | छपे की खबरें चटकारें लेकर पढ़ रही थी | ‘’ अच्छा काम कर रही सरकार | भ्रष्टाचार ऐसे में ही समाप्त होगा | भ्रष्ट लोगों को सजा मिलनी चाहिए | जनता की नजर में सरकारी कार्मीन भ्रष्ट है | सत्ता के राजनैतिक साधक ईमानदार हैं | क्योंकि वे भ्रष्टता  के खिलाफ चल रहे थे |
   जनता इतनी नासमझ है | उसने सोचा तक नहीं भ्रष्टाचार की शुरुआत की नींव कहाँ है | किसके इशारे पर प्रशासन की बेलगाम बनाते हैं |
  जनता को सरकार ने योजनाओं का सब्ज बाग़ दिखाया नहीं कि वह सरकार की हो जाती है | जनता को क्या चाहिए दवा दारु , सस्ता अनाज और आश्वासन | सो इत्ता काम सरकार कर देती है | अत: वर्त्तमान माहौल में जनता सरकार के लिए थी और सरकार जनता के लिए |
  मैंने आम आदमी से पूछा | जो लोकतंत्र में जनता की परिभाषा होता है |
  ‘’ सरकार की चाल समझ में आयी तुम्हें ?’’
  ‘’कैसी चाल ?’’
 ‘’ सरकार का निशाना प्रशासन के कर्मियों पर है | छपे उनके घर पर पद रहें हैं | जबकि स्वयं उनके कई मंत्री-नेता  भ्रष्टाचार में लिप्त हैं | वे सुरक्षित हैं | ‘’
  ‘’ असली भ्रष्टाचार तो कर्मीं  अपनाते हैं |’’
  ‘’ राजनीति उन्हें करवाती है |’’
  ‘’ वे नकारते क्यों नहीं |’’
 ‘’ उन्हें नौकरी करनी हैं | राजनीति हर किसी को सीधा करना जानती है और टेढा भी | आम आदमी खामोश हो चुका था | बहस से दूर होकर उसके दिमाग में सिर्फ एक जूनून था | किसी तरह भ्रष्टाचार मिटे | अत: भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलनरत था जनता की मंशा को कुछ हद तक सफलता से जोड़ने के लिए सरकार अपना तरिका अपना रही थी विपक्षी अपना | जनता रूपी उल्लू की टाँगे एक-एक दोनों पकडे बैठे थे | अब देखना था सीधा करने में किसे सफलता मिलाती | फिलहाल उल्लू छटपटा रहा है | दर्द से कराह रहा है | सरकार और विपक्षी मुस्कुरा रहे थे |

गुरुवार, 28 मई 2015

व्यंग्य-शुभकामनाओं के फंडे


व्यंग्य-शुभकामनाओं के फंडे

 साब, आपने अपनों को शुभकामनाएं तो दी होगी  | और देते होंगे| देते रही अपनों को खुश रखने के लिए | इस मंहगाई के युग में शुभकामनाएं देना ही एक साधन है जो बिना मूल्य चुकाए निपट जाता है | वरना गिफ्ट तो अच्छे – अच्छे को दूसरी शक्ल में शिफ्ट कर देता है | शुभकामनाएं देते रहते हैं | इन्टरनेट में उपलब्ध सुविधा के तहत | मौसम में भी और  बेमौसम में भी | वो भी फ्री में फ्री एस.एम्.एस. करें के तहत | चलो हम भी रचना के माध्यम से आपको शुभकामनाएं दे देते है कि आप खुश रहें |
 साब, शुभकामनाएं देना सिर्फ सामाजिक व्यवहार ही नहीं है | बल्कि इसमें कुछ राज भी छिपे हैं |राज को जानना चाहेंगे | जान गए तो आप भी हमारी तरह आधी रात को उठकर शुभकामनाएं देने को ललचायेंगे |
   चलो साब, बता देते हैं | अपन यूँ ही फ़ोकट में किसी को शुभकामनाएं नहीं देते | अपन तो उल्लू बनाते हैं | आप जैसे लोगों को सुभकामना देकर | वो कैसे साब? वो ऐसे साब कि हमने आपके मोबाइल पर एस.एम्.एस. ठोंका हमारे नेट अकाउंट में पैसे जमा हो गए | हमें क्या लेना-देना आपकी ख़ुशी गम से |
  साब किसी को उल्लू बनाना हो तो उसे शुभकामनाएं देते रही | कारण बिना कारण के | आपका अपना उल्लू हमेशा सीधा बना रहेगा | साब, वह समझ भी नहीं पाएगा कि आपके शुभकामना देने का राज क्या है | बल्कि वह ख़ुशी से कहेगा- ‘’ कटारे जी बहुत नेक इंसान हैं | अपन याद रखें या ना रखें | वे अपन को याद करते रहते हैं | दिल में रखते हैं | बस यह भाव उसके मन में पैदा होते ही अपने उल्लू के पीछे छिपे स्वार्थ को परोस दीजिए | मसलन साब, आप मुझे दस- बीस हजार की हेल्प करते तो बड़ा अच्छा होता | फिर देखी पट्ठा कैसे हाँ नहीं करता | वह कहेगा ‘’ कटारे जी आप चिंता न करें | आपका ख्याल रखना तो हमारा फर्ज है |’’’ पर साब इस बात का ख्याल रखिएगा शुभकामनाएं देना बंद न करियीगा | अगर वह समझ गया तो समझिए आप स्वार्थी तो हैं | मगर उसकी नज़रों में स्वार्थी घोषित हो जायेंगे | क्या फ़ायदा अपने पैर  पर कुल्हाड़ी मारने से |
  दूसरी बात यह है कि शुभकामना में शब्दों की नवीनता होनी चाहिए | माना कि आप उसकी तारीफ़ में जुबान से शहद उड़ेल रहे हैं , शहद ही उदेलें | भले ही आप के मन में  कराला चढ़ रहा हो उसके प्रति | उसे अपनी जगह पर चढाने दो | मगर जुबान पर शहद के छत्ते ही बना कर रखें |
  पड़ोसी ब्लाक के एक नेता जी को शुभकामना देने का भूत सवार है | उन्हें कहीं से खबर लग गयी | इस बार चुनावी टिकट उन्हें इस मिलने जा रही है | बस वे विधान सभा क्षेत्र में यह पता करते रहते है | किसके घर कौन सा आयोजन होने जा रहा है | अपनी तस्वीर से सजा शुभकामनाएं का कैलेण्डर समबन्धित तक भिजवा देते हैं | उनके चमचों का नेटवर्क पूरे इलाके में फैला है | उनसे उन तक खबर पहुँच जाती है नेटवर्क भी इतना मजबूत कि नामी गिरामी संचार कम्पनियां भी उनके सामने घुटने टेक दे |
यूँ तो वे पहले महान संतों की तस्वीर के साथ अपनी तस्वीर वाला शुभकामना वाला कैलेण्डर भेजा करते थे | मगर जब से बाबा लोगों का ब्रम्हचर्य के नंगे होने की खबर मीडिया में छायी है | वे भी उनसे पल्ला क्जाद कर उनके चित्र वाले कैलेण्डर दफ़न कर दिए |
    इधर जब से हमारे जिला कार्यालय के बड़े बाबू को पता चला है कि हम स्थांतरण कराने की ईच्छा रखते हैं | वे कई दिनों से हमें शुभकामनाओं का एस.एम्.एस. आये दिन देते रहते हैं | साथ में यह भी टीप कर देते हैं | ‘’ परेशान होने की जरुरत नहीं है | अपने लोग भोपाल में मौजूद हैं |’’ बाद में हमें पता चला कि वे राजधानी स्थित ट्रांसफर माफियाओं के एजेंट हैं |
   शुभकामना देते वक्त इस बात का भी ध्यान रखें कि उसमें कुछ आधुनिकता झलके मसलन’’ आपका प्यार पवन सुपर फास्ट एक्सप्रेस की तरह पटरी पर दौड़ता रहे |’’ तो साब ये रहे कुछ फंडे | प्लीज आजमाइएगा|
          सुनील कुमार ‘’ सजल’’