व्यंग्य- साहब का हिन्दी प्रेम
इन साहब को अच्छी हिन्दी सीखने का शौक लगा है
|अच्छी हिंदी सीखने के पीछे का रहस्य यह है किउन्हें अच्छी हिन्दी आती नहीं |वैसे
वे हिन्दीभाषी क्षेत्र में पैदा हुए हैं पर न जाने क्यों |हिन्दी शीखाने को तरस गए
|
साहब को मराठी ,तमिल, अंग्रेजी अच्छी तरह आती है पर हिन्दी नहीं आती | ऐसा
साहब कहते हैं | साहब की दृष्टि में
हिन्दी व् साली में ज्यादा फर्क नहीं है | वे कहते कहते हैं , जैसे वे आज तक अपनी
साली का स्वभाव नहीं समझ पाए | वैसे ही हिन्दी को |
साहब की मम्मी अहिन्दी भाषी है | उनकी मां को मम्मी का संबोधन हमने इसलिए
दिया , क्योंकि उन्हें हिन्दी से वैसे ही नफ़रत रही है , जैसे आधुनिक महिलाओं को
माथे पर लगायी जाने वाली बिन्दी से |
हमारे साहब के बच्चे कान्वेंट में पढ़ते हैं | पर साहब का हिन्दी से ऐसा मोह
है कि वे हांडी में हस्ताक्षर करते हैं | हमें तो लगता है वे हिन्दी की
चापलूसीवश हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं
| वैसे हिन्दी के क्षेत्रों में अधिकाँश अवार्ड चापलूसी पर ही मिलते हैं | यूं तो
उनकी जुबान में ज्यादातर अंग्रेजी शब्द ही बसते हैं | साहब का हिन्दी शीखाने का
शौक प्रबलता पर है | इस हेतु वे नाना प्रकार के शब्दकोश भी बाजार से उठा लाए हैं |
वैसे हमने सूना किउनकी पत्नी कवियित्री है | हिन्दी में कवितायेँ लिखती हैं
| कविताओं की जतिलाताएं उनकी समझ में नहीं आती | अखबार वाले पत्नी की कवितायें छाप
रहें हैं | मांग-मांगकर छपते हैं | वे ऐसा किस दबाव या स्वार्थ में करते हैं यह तो
अखबार वाले ही जानें |
पिछले दिनों उच्च कार्यालय से हिन्दी दिवस मनाने के आदेश प्राप्त हुए |
साहब चिंतित थे हिन्दी में भाषण देने को लेकर | वह भी शुध्द हिन्दी में | उनकी
जुबान आमतौर पर अंग्रेजी ही बोलती है | उन्हें डर है | भाषण के दौरान अंग्रेजी
उनकी जुबान पर न आ जाए , सीमा पर घुसपैठिए की तरह |
साब ने शर्मा बाबू को बुलाकर कहा-‘’ यार, शर्मा आप तो ब्राम्हण हो |
हिन्दी, संस्कृत का अच्छा ज्ञान रखते हो | हमारे लिए हिन्दी दिवस पर एक शानदार
भाषण तैयार करो |’’
‘’क्या लिखें साहब |’’
‘’
हिंदी की बढ़ोतरी के लिए मस्केबाजी , और क्या |’’
‘साहब अपन तो फाइलों में कीड़े की तरह रेंगते रहते हैं |अच्छा यह है सर किआप
गुप्ताजी से लिखवा लें | वे अच्छे व्यंग्यकार भी हैं पर साहब मदम तो स्वयं लेखिका
हैं | उनसे क्यों नहीं लिखवाते आप |’’
‘’
यार वह सिर्फ कवितायें लिखती हैं और जो लिखती हैं वह मेरे सर के ऊपर से गुजरता है
| ‘’ साहब ने कहा |
साब
ने गुप्ताजी को बुलाकर भाषण लिखने का प्रस्ताव रखा | वे टालमटोल कर गए –‘’ ‘’ साब
मैं भाषण नहीं लिखता | सिर्फ व्यंग्या लिखता हूँ | आप कहें तो लिख दूं |’’
‘’सर पर बचे बाल को भी उड़ाना चाहते हो ?’’
गुप्ताजी तुरंत खिसक लिए | हिंदी
दिवस करीब आ रहा है | साहब चिंतित हैं | भाषण को लेकर | देखते है किसका लिखा भाषण
पढेंगे | स्वयं का या पत्नी का, यह तो उसी दिन पता चलेगा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’