शनिवार, 12 सितंबर 2015

व्यंग्य- साहब का हिन्दी प्रेम


व्यंग्य- साहब का हिन्दी  प्रेम

इन साहब को अच्छी हिन्दी  सीखने का शौक लगा है |अच्छी हिंदी सीखने के पीछे का रहस्य यह है किउन्हें अच्छी हिन्दी  आती नहीं |वैसे वे हिन्दीभाषी क्षेत्र में पैदा हुए हैं पर न जाने क्यों |हिन्दी शीखाने को तरस गए |                         
     साहब को मराठी ,तमिल, अंग्रेजी अच्छी तरह आती है पर हिन्दी नहीं आती | ऐसा साहब कहते हैं |   साहब की दृष्टि में हिन्दी व् साली में ज्यादा फर्क नहीं है | वे कहते कहते हैं , जैसे वे आज तक अपनी साली का स्वभाव नहीं समझ पाए | वैसे ही हिन्दी को |
      साहब की मम्मी अहिन्दी भाषी है | उनकी मां को मम्मी का संबोधन हमने इसलिए दिया , क्योंकि उन्हें हिन्दी से वैसे ही नफ़रत रही है , जैसे आधुनिक महिलाओं को माथे पर लगायी जाने वाली बिन्दी से |
      हमारे साहब के बच्चे कान्वेंट में पढ़ते हैं | पर साहब का हिन्दी से ऐसा मोह है कि वे हांडी में हस्ताक्षर करते हैं | हमें तो लगता है वे हिन्दी की चापलूसीवश  हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं | वैसे हिन्दी के क्षेत्रों में अधिकाँश अवार्ड चापलूसी पर ही मिलते हैं | यूं तो उनकी जुबान में ज्यादातर अंग्रेजी शब्द ही बसते हैं | साहब का हिन्दी शीखाने का शौक प्रबलता पर है | इस हेतु वे नाना प्रकार के शब्दकोश भी बाजार से उठा लाए हैं |
    वैसे हमने सूना किउनकी पत्नी कवियित्री है | हिन्दी में कवितायेँ लिखती हैं | कविताओं की जतिलाताएं उनकी समझ में नहीं आती | अखबार वाले पत्नी की कवितायें छाप रहें हैं | मांग-मांगकर छपते हैं | वे ऐसा किस दबाव या स्वार्थ में करते हैं यह तो अखबार वाले ही जानें |
     पिछले दिनों उच्च कार्यालय से हिन्दी दिवस मनाने के आदेश प्राप्त हुए | साहब चिंतित थे हिन्दी में भाषण देने को लेकर | वह भी शुध्द हिन्दी में | उनकी जुबान आमतौर पर अंग्रेजी ही बोलती है | उन्हें डर है | भाषण के दौरान अंग्रेजी उनकी जुबान पर न आ जाए , सीमा पर घुसपैठिए की तरह |
     साब ने शर्मा बाबू को बुलाकर कहा-‘’ यार, शर्मा आप तो ब्राम्हण हो | हिन्दी, संस्कृत का अच्छा ज्ञान रखते हो | हमारे लिए हिन्दी दिवस पर एक शानदार भाषण तैयार करो |’’
   ‘’क्या लिखें साहब |’’
  ‘’ हिंदी की बढ़ोतरी के लिए मस्केबाजी , और क्या |’’
  ‘साहब अपन तो फाइलों में कीड़े की तरह रेंगते रहते हैं |अच्छा यह है सर किआप गुप्ताजी से लिखवा लें | वे अच्छे व्यंग्यकार भी हैं पर साहब मदम तो स्वयं लेखिका हैं | उनसे क्यों नहीं लिखवाते आप |’’
  ‘’ यार वह सिर्फ कवितायें लिखती हैं और जो लिखती हैं वह मेरे सर के ऊपर से गुजरता है | ‘’ साहब ने कहा |
  साब ने गुप्ताजी को बुलाकर भाषण लिखने का प्रस्ताव रखा | वे टालमटोल कर गए –‘’ ‘’ साब मैं भाषण नहीं लिखता | सिर्फ व्यंग्या लिखता हूँ | आप कहें तो लिख दूं |’’
   ‘’सर पर बचे बाल को भी उड़ाना चाहते हो ?’’
    गुप्ताजी तुरंत खिसक लिए |    हिंदी दिवस करीब आ रहा है | साहब चिंतित हैं | भाषण को लेकर | देखते है किसका लिखा भाषण पढेंगे | स्वयं का या पत्नी का, यह तो उसी दिन पता चलेगा |
                सुनील कुमार ‘’सजल’’

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