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रविवार, 4 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- दीनू के बढ़ते कदम

व्यंग्य- दीनू के बढ़ते कदम


वह शहर के गुरन्दी बाजार में मौजूद था |गुरंदी बाजार वह बाजार है जहां कबाड़ और चोरी के माल को नम्बर वन बनाया जाता है |
 उसे सुतली , कांच के तुकडे, बारूद , पालीथीन व् लोह चूर्ण खरीदता देख मैंने दुकान से दूर बुलाकर पूछा- ‘’ क्या करेगा इनको ? क्या बनाने जा रहा है ?
‘’ बम बनाउंगा | पटकनी बम बनाऊंगा साब |’’ उसने मुकराकर कहा |
‘’ बम क्या करेगा ?’ मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी |
 ‘’ बेचूंगा |’’ वह बोला |
‘’ किसे?’
‘’ अपने शहर के गुंडे-मवालियों को साब | सोलह वर्षीय दीनू ऐसे उत्तर दे रहा था , जैसे किसी बम फैक्ट्री का मालिक हो
‘’ अबे पुलिस को मालूम हुआ तो कहीं का न छोड़ेगी |’’
वह हंसा जैसे मैंने बच्चों वाली बात कही हो |’
‘’ वह भी तो हम से खरीदती है साब |’’
‘’ क्या कहा? पुलिस तुमसे बम खरीदती है | बेवकूफ |’ मैंने कहा |
‘’ फर्जी केस बनाने के लिए खरीदती है |’ वह हंस रहा था |
‘’ शहर की पुलिस इतनी गिरी नहीं है कितुझ जैसे से बम ख़रीदे |’’
‘’ आप मानते क्यों नहीं साब |’ उसने अपनी बातों पर जोर देकर कहा |
‘’ हम कैसे मां लें | मैंने कहा |
‘’ अच्छा चलो हम आपकी एक घटना बताते हैं | पर साब बहुत देर हो गयी | तम्बाकू वाला पान नहीं खाया है खिला दो न साब |’ दीनू [पर मुझे तरस आता है | वह मेरे मोहल्ले का लड़का है | जब तब मेरा काम सुन लेता है | जाने क्यों उस पर मेरा प्रेम उमड़ता है | ‘’ आज कल टू नशा भी करता है |’’
‘’ का करें साब | सीख गए हैं | पान खिला दो न साब | बम के पैसे मिलेंगे तो मैं आपको नाश्ता कराउंगा |’’ मैं उसकी तलब भरी व्याकुल विनती को स्वीकारते हुए उसे पान की दुकान की ओर ले गया | पान खिलाया |
पान खाते ही वह बोला-‘’ हाँ तो साब हम दो घटना बताने वाले थे | ‘’ मेरी हामी पर वह घटना सुनाने लगा |
‘’पिछले माह पुलिस एक आदमी को पकड़कर लायी थी |’’ वह व्यक्ति अपराधी नहीं था | उन्हें कल्लू भाई अपराधी के साथ बैठा मिल गया | कल्लू भाई का उसके इलाके में बड़ा नाम है | अत: कल्लूभाई बम काण्ड केस उस व्यक्ति के सर मढ़ना पुलिस की मजबूरी थी | मेरे पास से पुलिस ने दस बम लिए थे |’’
थाणे में उसे धमकाते हुए कह रहे थे –‘’ बेटा इन बमों के साथ तुझे अपना अपराध तो स्वीकारना पडेगा |’ वह गिडगिड़ा रहा था – ‘’ माई – बाप मुझे छोड़ दो | मैं गरीब हूँ | कल्लूभाई के बुलाने पर उन्हें बीडी देने गया था |’’
‘’ चुप स्साले , कालू का नाम लिया तो....| बोल कि यह बम मेरे पास थे |’’ तीन चार थप्पड़ उसके गाल पर जमाते हुए पुलिस वाला कदका | वह वहीँ सिटपिटा गया | अंतत: उसे थोपा गया जुर्म कुबुलना पडा | एक घटना और है साब , कल्लू की दबंगई की |’’
 मैं चुप रहा मगर वह सुनाते है बोला-‘’ होमगार्ड की बिटिया संग कालू भाई पूरी रात बलात्कार किया था मगर पुलिस ने उसे यह `कहकर गिरफ्तार नहीं किया कि जवानी के जोश में ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं |’’
 ‘’ अच्छा  छोड़ फालतू की बातें |  बता यह काम तूने कहाँ से सीखा | मैंने कहा |
‘’ झुग्गी तोले में मेरे दो-चार दोस्त रहते हैं न साब | वे मुझे सिखाये हैं | ‘’ उसका इत्मीनान भरा जव्वाब था |
‘’ देख , अब यह काम छोड़ | दूसरा धंधा देख |’’
‘’ का है कि साब छोटा समझकर लोग सही काम की सही मजदूरी देते नहीं | ऐसे कब तक शोषित होएँगे साब | इस धंधे में अच्छी आमदानी हो जाती है | दो जून की रोटी जुटाकर हफ्ते में एकाध बार अंग्रेजी दारू-मुर्गा का स्वाद भी चख लेते हैं | आप लोग जैसा ऐश तो नहीं कर सकते न साब |’’ वह बहुत खुश होते हुए बोला |
 दीनू के सम्बन्ध अपराध की दुनिया से बनाते जा रहे हैं |उसकी पुलिस से भी दोस्ती है तो अपराधियों से भी | वह अभी इतनी समझ नहीं रखता कि उसके धंधे से देश का क्या नुकसान हो सकता है | उसकी जरुरत धन है | धन कमाने हेतु उसके लिए यह आसान रास्ता है | उसके छोटे-मोटे सपने आसान होते जा रहे हैं | इंसान की यही तो कमजोरी होती है कि वह आसान रास्ते से मंजिल पाना चाहता है
         सुनील कुमार ‘सजल’


शनिवार, 12 सितंबर 2015

व्यंग्य- साहब का हिन्दी प्रेम


व्यंग्य- साहब का हिन्दी  प्रेम

इन साहब को अच्छी हिन्दी  सीखने का शौक लगा है |अच्छी हिंदी सीखने के पीछे का रहस्य यह है किउन्हें अच्छी हिन्दी  आती नहीं |वैसे वे हिन्दीभाषी क्षेत्र में पैदा हुए हैं पर न जाने क्यों |हिन्दी शीखाने को तरस गए |                         
     साहब को मराठी ,तमिल, अंग्रेजी अच्छी तरह आती है पर हिन्दी नहीं आती | ऐसा साहब कहते हैं |   साहब की दृष्टि में हिन्दी व् साली में ज्यादा फर्क नहीं है | वे कहते कहते हैं , जैसे वे आज तक अपनी साली का स्वभाव नहीं समझ पाए | वैसे ही हिन्दी को |
      साहब की मम्मी अहिन्दी भाषी है | उनकी मां को मम्मी का संबोधन हमने इसलिए दिया , क्योंकि उन्हें हिन्दी से वैसे ही नफ़रत रही है , जैसे आधुनिक महिलाओं को माथे पर लगायी जाने वाली बिन्दी से |
      हमारे साहब के बच्चे कान्वेंट में पढ़ते हैं | पर साहब का हिन्दी से ऐसा मोह है कि वे हांडी में हस्ताक्षर करते हैं | हमें तो लगता है वे हिन्दी की चापलूसीवश  हिन्दी में हस्ताक्षर करते हैं | वैसे हिन्दी के क्षेत्रों में अधिकाँश अवार्ड चापलूसी पर ही मिलते हैं | यूं तो उनकी जुबान में ज्यादातर अंग्रेजी शब्द ही बसते हैं | साहब का हिन्दी शीखाने का शौक प्रबलता पर है | इस हेतु वे नाना प्रकार के शब्दकोश भी बाजार से उठा लाए हैं |
    वैसे हमने सूना किउनकी पत्नी कवियित्री है | हिन्दी में कवितायेँ लिखती हैं | कविताओं की जतिलाताएं उनकी समझ में नहीं आती | अखबार वाले पत्नी की कवितायें छाप रहें हैं | मांग-मांगकर छपते हैं | वे ऐसा किस दबाव या स्वार्थ में करते हैं यह तो अखबार वाले ही जानें |
     पिछले दिनों उच्च कार्यालय से हिन्दी दिवस मनाने के आदेश प्राप्त हुए | साहब चिंतित थे हिन्दी में भाषण देने को लेकर | वह भी शुध्द हिन्दी में | उनकी जुबान आमतौर पर अंग्रेजी ही बोलती है | उन्हें डर है | भाषण के दौरान अंग्रेजी उनकी जुबान पर न आ जाए , सीमा पर घुसपैठिए की तरह |
     साब ने शर्मा बाबू को बुलाकर कहा-‘’ यार, शर्मा आप तो ब्राम्हण हो | हिन्दी, संस्कृत का अच्छा ज्ञान रखते हो | हमारे लिए हिन्दी दिवस पर एक शानदार भाषण तैयार करो |’’
   ‘’क्या लिखें साहब |’’
  ‘’ हिंदी की बढ़ोतरी के लिए मस्केबाजी , और क्या |’’
  ‘साहब अपन तो फाइलों में कीड़े की तरह रेंगते रहते हैं |अच्छा यह है सर किआप गुप्ताजी से लिखवा लें | वे अच्छे व्यंग्यकार भी हैं पर साहब मदम तो स्वयं लेखिका हैं | उनसे क्यों नहीं लिखवाते आप |’’
  ‘’ यार वह सिर्फ कवितायें लिखती हैं और जो लिखती हैं वह मेरे सर के ऊपर से गुजरता है | ‘’ साहब ने कहा |
  साब ने गुप्ताजी को बुलाकर भाषण लिखने का प्रस्ताव रखा | वे टालमटोल कर गए –‘’ ‘’ साब मैं भाषण नहीं लिखता | सिर्फ व्यंग्या लिखता हूँ | आप कहें तो लिख दूं |’’
   ‘’सर पर बचे बाल को भी उड़ाना चाहते हो ?’’
    गुप्ताजी तुरंत खिसक लिए |    हिंदी दिवस करीब आ रहा है | साहब चिंतित हैं | भाषण को लेकर | देखते है किसका लिखा भाषण पढेंगे | स्वयं का या पत्नी का, यह तो उसी दिन पता चलेगा |
                सुनील कुमार ‘’सजल’’