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रविवार, 21 फ़रवरी 2016

लघुव्यंग्य – गारंटी

लघुव्यंग्य – गारंटी

‘’ तुम भी शीला किस बुद्धि की हो ...छोटी-सी नौकरी में लगे लडके को अपनी फूल-सी बिटिया का हाथ थमाकर ढेर सारा दहेज़ दे बैठी .... और दूसरे लडके नहीं मिल रहे थे क्या |’’ सुनीति ने कहा तो वह बोली –‘’ लडके तो  बहुत मिल रहे थे .... पर इसमें बात कुछ और है |’’
‘’ क्या बात है हमें भी तो बताओ ?’’’
‘’ दामाद सरकारी नौकर है ... कम से कम रश्मि की रोजगार की गारंटी तो सुरक्षित है |’

‘’ मतलब |’’
‘’ बात सीधी-सी है कल दामाद की जिंदगी रही न रही तो रश्मि को अनुकम्पा नौकरी तो मिल जाएगी ...किसी के भरोसे तो जिंदगी नहीं काटनी पड़ेगी उसे ....अब शान्ति बहन की बिटिया पुनीता के हाल तो मालूम है न पति व्यवसायी था | देहांत हो गया | अब पुनीता के हाल देख रही हो न ....बच्चे मारे मारे फिर रहे हैं ... और खुद नौकर की भाँती ... कम से कम अपनी रश्मी तो ....|   शीला ने उदाहरण सहित समझाते हुए कहा |


  सुनील कुमार ‘’सजल’’