लघुकथा -प्रतिष्ठा
‘’
सरकारी स्कूल....! हूं....!मैं तो भूलकर भी तुम्हारी तरह अपने बच्चों का एडमिशन
किसी सरकारी स्कूल में नहीं करा सकती |’’ शीला ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए अपनी सहेली
से कहा |
‘’ पर
शीला एक बार ज़रा उस स्कूल के रिजल्ट की तरफ भी तो देखो...| बोर्ड परीक्षा में पांच
छात्रों ने मेरिट में स्थान बनाया है और दर्जन भर फर्स्ट डिविजन हैं ...|’’ राधा
ने शीला को समझाते हुए कहा |
‘’ तो
क्या हुआ...? अरे लोग पूछेंगे तो हम पर हसेंगे ही ना... कि हर तरह से सक्षम होते
हुए भी हम गरीबों की तरह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं ....| सक्षम
होते हुए भी हम अपने बच्चों का एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में नहीं करा सकते थे ...|
यहाँ तो समाज में प्रतिष्ठा का सवाल है ......आखिर हम कमाते किसके लिए हैं ....?’’
शीला के
इस तर्क पर आखिर राधा को चुप रहना ही पड़ा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’
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