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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

लघुव्यंग्य- गम

लघुव्यंग्य- गम

‘’ इतनी छोटी उम्र में नशा करते हुए तुझे शर्म नहीं आती |’’ थानेदार  ने उसके गाल पर थप्पड़ जमाते हुए पूछा |
‘’ का करूँ साब मजबूरी है |’’ उसने मिमियाती आवाज में कहा |’
‘’ काहे की मजबूरी बे |’’
‘’ गम भुलाने की |’’
‘’ किस बात  का गम बे | किसी छोरी का |’’
‘’ जी नहीं साब ! मां बाप का |’’
‘’ का वे मर गए .....|’
जी नहीं.....|’
‘’ तो काहे का गम बे ....|’
‘’ साब वे खुदअपना गम भुलाने के  लिए नशे में डूबे रहते हैं | मेरा ख्याल नहीं रखते | इसलिए मैं भी उनका गम भुलाने के लिए...|’
 थानेदार  के उसके शरीर पर चलते हाथ वहीँ ठहर गए |

      सुनील कुमार ‘’सजल’