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रविवार, 11 फ़रवरी 2018

लघुकथा -संतुष्ट सोच

लघुकथा - संतुष्ट सोच 
नगर के करीब ही सड़क से सटे पेड़ पर एक व्यक्ति की लटकती लाश मिली । देखने वालों की भीड़ लग गयी ।लोगों की जुबान पर तर्कों का सिलसिला शुरू हो गया ।
किसी ने कहा-"लगता है साला प्यार- व्यार  के चक्कर में लटक गया ।"
"मुझे तो गरीब दिखता है ।आर्थिक परेशानी के चलते....।" 
"किसी ने मारकर  लटका दिया ,लगता है ।"
"अरे यार कहाँ की बकवास में लगे हो ।किसान होगा ।कर्ज के बोझ से परेशान होकर लगा लिया फांसी ..।अखबारों में नहीं पढते क्या ...आजकल यही लोग ज्यादातर आत्महत्या कर रहे हैं ।"
भीड़ में खड़े एक शख्स ने एक ही तर्क से सबको संतुष्ट कर दिया ।
-सुनील कुमार "सजल"

बुधवार, 24 जनवरी 2018

लघु व्यंग्य - अंकुश

लघु व्यंग्य -अंकुश
गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों के एक समूह ने अपनी अधीक्षिका के खिलाफ विद्रोह कर दिया ।वे शिकायत हेतु उच्च अधिकारी के पास पहुंची ।उनकी अधीक्षिका उन  पर अंकुश पर अंकुश लगाती हैं ।पीना-खाना, मौज-मस्ती,, घूमने -फिरने और लड़कों के संग दोस्ती पर अंगुलियां उठाती हैं । आखिर वे वयस्क हो गयी हैं ।समझदारी उनमें भी आ चुकी है फिर तरह तरह के अंकुश क्यों .....?"
    गंभीरता से उनकी बातें  सुनते अधिकारी की नजरें पूरी समझदारी के साथ उनके  आकर्षक बदन पर घूमने लगी थीं ।

शनिवार, 20 जनवरी 2018

लघुव्यंग्य -टाइम पास

लघुव्यंग्य- टाइम पास
"तू उससे जितना प्यार करती है, ।क्या वह भी  तुझसे उतना ही प्यार करता है ।"
"क्यों नहीं?"देखती नहीं ,रोज मेरे व्हाटस अप में लव मैसेज, फोटो,शेरो- शायरी भेजता है । रोज ब रोज प्यार भरी बातें भी ...। वह अधूरा सा वाक्य बोलते हुए मुस्काई ।
"पहली बार कब और  कहाँ मिली थी उससे ।"
"मिस्ड कॉल के जरिए जुड़ गए । फिर क्या था व्हाट्स अप पर लव चल रहा है ।"
"यानी अभी तक नहीं मिली उससे...। सहेली का आश्चर्य भहरा प्रश्न ।
"नहीं....।"
"कैसी पगली है , उसे देखा न सुना और प्यार कर बैठी । हो न हो, वह तेरी मासूमियत को पहचान कर  टाइम पास गेम की तरह  तेरी भावनाओं से खेल रहा हो ।"
"मैं कौन -सा अपना सब कुछ उस पर  न्यौछावर कर दी । मैं भी तो वही कर रही हूँ । "
"तू तो बड़ी चालाक लोमड़ी निकली रे । प्यार के बहाने टाइम पास....।"
" आजकल प्यार -व्यार में मर-मिटने  का    टाइम किसके पास  है ..। सब टाइम पास है ...। और वह खिलखिलाकर हंस पड़ी । अब सहेली के पास पूछने के लिए कुछ भी शेष नहीं था ।
          - सुनील कुमार सजल

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

लघुव्यंग्य- गम

लघुव्यंग्य- गम

‘’ इतनी छोटी उम्र में नशा करते हुए तुझे शर्म नहीं आती |’’ थानेदार  ने उसके गाल पर थप्पड़ जमाते हुए पूछा |
‘’ का करूँ साब मजबूरी है |’’ उसने मिमियाती आवाज में कहा |’
‘’ काहे की मजबूरी बे |’’
‘’ गम भुलाने की |’’
‘’ किस बात  का गम बे | किसी छोरी का |’’
‘’ जी नहीं साब ! मां बाप का |’’
‘’ का वे मर गए .....|’
जी नहीं.....|’
‘’ तो काहे का गम बे ....|’
‘’ साब वे खुदअपना गम भुलाने के  लिए नशे में डूबे रहते हैं | मेरा ख्याल नहीं रखते | इसलिए मैं भी उनका गम भुलाने के लिए...|’
 थानेदार  के उसके शरीर पर चलते हाथ वहीँ ठहर गए |

      सुनील कुमार ‘’सजल’