मंगलवार, 13 सितंबर 2016

लघुव्यंग्य – कष्ट के पीछे

लघुव्यंग्य – कष्ट के पीछे

कोर्ट के आदेश के उपरांत नगर की ट्रैफिक पुलिस बिना हेलमेटधारी दोपहिया वाहन चालकों के प्रति हरकत में आ गई थी |उन्हें जबरिया पकड़कर कार्यवाही कराती या फिर उनके साथ चलाकर उन्हें दूकान से हेलमेट खरीदने हेतु बाध्य कर रही थी | उनकी ड्यूटी स्थल ज्यादातर उन स्थानों पर होता जहां दुकानों में हेलमेट इत्यादि आसानी से उपलब्ध थे |
  हमने ट्रैफिक पुलिस के एक जवान मित्र से पूछा – ‘’ आप चालकों को दुकानदार के पास पकड़कर ले जाते हैं अच्छा यही हो कि उनकी गलती पर सीधे तैर पर जुर्माना ठोंककर कार्यवाही कर दीजिये ... फालतू में अपना टाइम वेस्ट करते हैं ... और दुकानदार तक जाने की जहमत उठाते हैं ?’’
‘’ हम पुलिस वालों के लिए टाइम वेस्ट ... जहमत ?  ‘’ वे हंसते हुए बोले –‘’ अरे भाई अगर आरोपी तत्काल हेलमेट खरीद लेता है तो हमारा कमीशन दुकानदार से बन जाता है ... वरना उसका चालान तो बनायेंगे ही | वे आगे बोले – ‘’ अपन पुलिस वाले हर कष्ट के पीछे अपनी जेब गरम कृत्र ही हैं मेरे भाई |’’


सुनील कुमार ‘सजल’’ 

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

लघुव्यंग्य – अंतत:

लघुव्यंग्य – अंतत:

शिक्षा अधिकारी ने एक स्कूल में निरीक्षण में पाया, छात्रों को दिए जाने वाला मध्यान्ह भोजन मीनू के अनुकूल नहीं दिया जा रहा है | उसने संस्था के कर्मचारियों एवं ठेके पर प्रतिदिन भोजन पकाने वाले समूह के सदस्यों को फटकारते हुए धमकाया | उनकी बातें सुनते-सुनते समूह के एक अधेड़ व्यक्ति ने आखिर अपना मुंह खोल दिया – ‘’ सरकार आपके द्वारा जो हमें राशि भुगतान की जा रही है , उससे अगर आप मीनू के अनुसार एक दिन बच्चों के भोजन की व्यवस्था कर दें तो मैं तीन दिन का भुगतान आपके खाते में जमा कर दूंगा ...| इस मंहगाई के दौर में में हम इस योजना को मात्र इसलिए घसीट रहे हैं ताकि हमारे व पास – पड़ोस के बच्चे स्कूल में बने रहें ...| इसके पहले कितने ही समूह इस काम को छोड़कर जा चुके हैं ...यह बात आपको भी मालूम है ....|’’ उसकी बात पूरी होते ही अगल-बगल झांकते अधिकारी ने तुरंत समझाईश देते हुए बोले –‘’ अरे नहीं ...नहीं.. इस व्यवस्था को आप लोग ही चलाइये , हम लोग यूं ही डांटते फटकारते हैं ... हाँ मगर खाना –पीना साफ़-सुथरा और अच्छा देते रहना ...|

          सुनील कुमार ‘’ सजल’’


रविवार, 28 अगस्त 2016

लघुव्यंग्य – धंधा

लघुव्यंग्य – धंधा

चमन भाई को अपने धंधे में अचानक काफी नुकसान उठाना पडा |धंधे में लगी साड़ी पूंजी मटियामेट हो गयी |थोड़ा बहुत जो पास में था वह साहूकारों के कर्ज पटाने में चला गया |चमन को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें ? घर की माली हालत पर तनाव भरे आंसू बहाते उन्हें जाने क्या सूझा कि वे अपनों से थोड़ा सा कर्ज लेकर अवैध शराब बनवा कर बेचना शुरू कर दिया | इस पर प्रतिक्रया करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने उनसे कहा –‘’ यार भई आप तो एक इज्जतदार आदमी हैं अपनी इज्जत को दांव पर लगाते हुए यह क्या अवैध थर्रा बेच रहे है हैं | कम से कम धंधा तो ऐसा करते जिसमें इज्जत की भले ही एक ही रोटी मिलती | यह काम तो ...?’’
‘’भाई अगर यह इज्जतदार लोगों का धंधा नहीं है तो आप जैसे इज्जतदार लोग रोजाना शाम को कल्लू के घर हलक में गिलास दो गिलास वही ठर्रा उदालने क्यों जाते हैं ? कही ?””

   सुनील कुमार ‘’सजल’’


बुधवार, 6 जुलाई 2016

लघुकथा –फोन टेपिंग

लघुकथा –फोन टेपिंग

नेताजी कई दिनों से मायूस चल रहे थे | पार्टी व आम जनता के बीच उनकी कोई खास पूछ-परख नहीं हो रही थी |
एक दिन एक चमचे ने उनसे कहा-‘’ अगर यूं ही आप उपेक्षित होते रहे तो समझिये आपकी नेतागिरी का बल्ब एक दिन फ्यूज होकर रह जाएगा |’’
‘’ वाही तो मै भी सोच रहा हूँ प्यारे क्या करून ?’’
काफी गहन विचार कर चमचे ने उनसे कहा- ‘’ मेरी खोपड़ी में एक उपाय कुलबुला रहा है |’’
क्या?’’
‘’ मीडिया में खबर फैला दीजिये कि आपकी गोपनीय बातों का विपक्षी ‘’ फोन टेपिंग’’ कर रहे हैं ...फिर देखी सबका ध्यान आपकी ओर खिंच जाएगा और आप मरू में सींचे गए पौधे की तरह फिर से हरे भरे...|’’
‘’ वाह बेटा..| ‘’ नेताजी उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले –‘’ आज यह फार्मूला राजनीति में खूब फल-फूल रहा है ...|””
अगले दिन से अखबारों में समाचारों की शुरुआत उनके “” फोन टेपिंग”” वाली खबरों से हो रही थी | 

सुनील कुमार ‘’सजल’’


शनिवार, 14 मई 2016

लघुव्यंग्य – अभीतक

लघुव्यंग्य – अभीतक

एक पुलिस कर्मी ने पटाखों की दुकान से पटाखा पैक कराया और बिना भुगतान किये चल दिया | उसके जाने के बाद विक्रेता बुरी गालियाँ देते हुए बोला- ‘’ इन हरामखोरों के कारण धंधा ढंग से नहीं कर सकते |’’
साथ खड़े साथी ने उससे कहा-‘’ आपने बिल भुगतान करने को क्यों नहीं कहा ?
‘’ साला लायसेंस माँगने लगता तो कहाँ से दिखाता ....जो अभी तक मैंने बनवाया नहीं है |’’


सुनील कुमार ‘’सजल’’

शुक्रवार, 13 मई 2016

लघुकथा – कला

लघुकथा – कला

‘’ इतनी सुन्दर पेंटिंग कहाँ से खरीदी जीजाजी ....बड़ी सुन्दर लग रही है ....जी चाहता है इसे मैं ले लूं |’’बैठक कक्ष की दीवार पर टंगे चित्र की ओर इशारा करते हुए साली ने कहा |
जीजा जी का झट से जवाब था- ‘’ न..भई न ..इसे मैं किसी को नहीं दे सकता .. इसे मेरी भांजी सुषमा ने ख़ास तौर से अपने मामा को दिया है |’’
‘’ क्या सुषमा ने बनाया है...हूँ.. हो ही नहीं सकता देखने से तो नहीं लगती है वह कहीं से ...कि चित्रकार हो सकती है |’’
‘’ क्यों ? किसी कलाकार के चहरे पर उसके कला प्रेम की मुहर लगी होती है ?’’ जीजा जी ने कड़े शब्दों में कहा |
‘’ और नहीं तो क्या ... न तो कभी उसकी कला पात्र-पत्रिका के पृष्ठों पर देखने को मिली और न ही उसके चित्रों की कोई प्रदर्शनी लगी |’’साली ने कहा |
‘’ ‘’ सुनो साली साहिबा... मेरी भांजी को कम मत आंकना ....|तुम्हें बता दूं इस दुनिया में दो तरह के बलात्कार होते है एक तो वे जिन्हें थोड़ी –सी कला क्या हासिल हुई प्रदर्शन की भीड़ लगा लेते हैं और दूसरे वे जो पारंगत होने के बावजूद सिर्फ सीखते रहते हैं...समझी न |’’
जीजा जी के कथन पर साली साहिबा को गुस्सा आ रहा था |


सुनील कुमार ‘’सजल’’

गुरुवार, 12 मई 2016

लघुकथा- इज्जत

लघुकथा- इज्जत

पिछले साल वर्मा परिवार की नौकरानी सुखिया की बेटी कल्लो ने पड़ोस के विजातीय युवक माधो से प्रेम विवाह कर लिया था | वर्मा जी ने उन्हें काफी ऊटपटांग तरीके से बुरी तरह से अपमानित करते हुए कहा था |’’ तुम गरीब लोगो को वाकई में इज्जत की ज़रा भी परवाह नहीं रहती | अरे तुम्हारी लड़की को कुछ तो सोचना चाहिए था न ....कम से कम तेरी इज्जत की ही खातिर  ....! क्या तुम्हारे समाज में लड़कों का अकाल पड़ गया है जो परजात को...|’’
गरीबी और उनके यहाँ काम करने के कारण भला क्या कहती सुखिया उन्हें | सो मन मसोसकर चुप रह गई |
 आज वर्मा परिवार की लाडली बिटिया सुमिता का वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न हो रहा है | पिछले माह सुमिता ने राजधानी में रहते हुए अपने लिए खुद वर तलाश लिया था | लड़का विजातीय और पिछड़ी जाती का होते हुए भी यहाँ ‘’ निम्न जाति’’ शब्द आड़े नहीं आ रहा है | और न ही वर्मा परिवार की नाक कट रही है | बल्कि आए हुए मेहमानों के सामने उनके मुख से लडके का जमकर गुणगान किया जा रहा है | दरअसल वह अमेरिका की किसी कम्पनी में उच्च पद पर आसीन है |


सुनील कुमार ‘’सजल’