शुक्रवार, 6 मई 2016

लघुकथा -बल्कि

लघुकथा  -बल्कि

वह शादी के दस साल बाद मां बनने जा रही थी | पड़ोसनों ने उससे से कहा –‘’ अगर लड़की हुई तो क्या करोगी ...|वैसे भी आजकल लड़की का जन्म होना माता-पिता के सिर पर पहाड़ टूटने के समान है |’’
‘’लड़की हो या लड़का......हमें तो संतान होने से मतलब है |’’ उसने सहजता से उत्तर दिया |
‘’ शायद इसलिए न कि इतने साल बाद मां बनने जा रही हो ...|’’एक ने कटाक्ष शैली में कहा |
‘’ इसलिए नहीं ...|’’ ‘ उसने भी उसी लहजे में जवाब दिया –‘’ ‘’ बल्कि इसलिए कि अगर लड़की हुई तो तुम्हारे लडके की तरह समाज का एक लड़का अधेड़ कुंवारा नहीं बना बैठा रहेगा और लड़का हुआ तो तुम्हारी लड़की की तरह ढलती उम्र में वर के लिए नहीं इंतज़ार करेगी .....| ‘’ उसका चुभता जवाब सुनकर बाकी महिलाएं एक –दूसरे का मुंह देखती रह गयीं |

   सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

बुधवार, 4 मई 2016

लघुकथा – फर्ज

लघुकथा  फर्ज

रेशमा और पिताजी के बीच सुबह-सुबह ही काफी बहस हो गई थी | पिताजी के बाजार चले जाने के बाद मां ने रेशमा को समझाने के अंदाज में डांटते हुए कहा- ‘’ रेशमा तुझे कितनी बार समझाया कि अपने पापा से जुबान मत लड़ाया कर | पर तू मानने से रही | मैं देख रही हूँ कि तमीज के नाम पर तू दिनों-दिन मर्यादा को लांघती जा रही है |’’
‘’ मम्मी पहले पापा को समझाओ वो मुझसे कैसे – कैसे सवाल करते हैं |’’रेशमा पैर पटकते हुए बोली |
‘’ भला ऐसा कौन –सा प्रश्न कर दिया उन्होंने तुझसे ?’’
‘’ यही कि तू कल कॉलेज में जिस लडके के साथ घूम रही थी , वो कौन है ?रोजाना पार्क में क्यों जाती है ?और भी कई उलटे-सीधे सवाल ?’’
‘’ तो क्या हुआ....वो तेरे पिटा हैं | तुझ जैसी जवान कुँवारी लड़की की खोज-खबर रखना उनका फर्ज है | ज़माना ठीक नहीं है |’’
‘’ तो क्या केवल कुँवारी लड़की की ही खोज-खबर रखना उनका फर्ज है ? अगर शादी-शुदा होती और गलत कदम उठाती तो क्या मुझसे नजरें चुरा लेते ?क्या केवल कुंवारी लड़कियां ही गलत रास्ते पर जा सकती हैं | शादी-शुदा नहीं ?’’
रेशमा ने मां के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी | प्रश्नों के बोझ तले झुक  चुकी थी | आखिर वे भी एक प्राइवेट कम्पनी में क्लर्क हैं , जहां पुरुष कर्मचारियों की भीड़ अधिक है .....|


सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

मंगलवार, 3 मई 2016

लघुव्यंग्य – बाजार मूल्य

लघुव्यंग्य बाजार मूल्य

रमिया अपनी मां के साथ उसी डाक्टर के पास दूसरी बार गर्भपात कराने पहुंची तो डाक्टर से रहा नहीं गया | ‘’ इस तरह कब तक इसका गर्भपात कराकर इज्जत बचाती रहोगी .....इससे अच्छा इसकी शादी क्यों नहीं कर देती |’’ उसने रमिया की मां को सलाह देते हुए कहा |
‘’ दक्ताएर साब....हम लोग देह धंधे वाले ठहरे | हमें इज्जत की नहीं ग्राहक की जरुरत होती है | इसकी शादी करा दूंगी तो वर्त्तमान बाजार मूल्य कहाँ रह जाएगा .. जो आज लोग बिना मोल-भाव किए नोटों की गद्दिया फेंक जाते हैं |’’
डाक्टर की चकित नजरें अब कलम के साथ दवा पर्ची पर घिसटती चली जा रही थी |

  सुनील कुमार ‘’सजल’’



सोमवार, 2 मई 2016

लघुव्यंग्य – पैसा

लघुव्यंग्य पैसा

बिजली संकट चल रहा था |पत्नी कई दिनी से जिद कर रही थी  | इनवर्टर खरीद लाओ | लेकिन ठंडी  सिकुड़ी जेब के कारण हर माह मिलाने वाले वेतन के दौर में भी मैं सोच कर रह जाता |
एक दिन पत्नी मुझसे से कहा-‘’ बाबूजी के लिए हर माह सात-आठ रुपये की दवाएं तो आती होगीं |’’
‘’हाँ क्यों नहीं |’’
‘यहाँ कि दुकानों में नकली दवाएं तो मिलाती होंगी |’’
‘’ हाँ...क्यों नहीं वह तो पूरे देश में बिक रहीं हैं | मगर यह सब क्यों पूंछ रही हो ?’’
‘’ मैं सोच रही थी .. इनवर्टर किस्तों में उठा लेते और बाबूजी के लिए उतनी नकाक्ली दवाएं ला दिया करते उनसे जो पैसे बचते उससे इनवर्टर की क़िस्त जमा हो जाती और बाबू जी को हर माह दवा मिलाने की सांत्वना रहती |हमें इनवर्टर पाने की ख़ुशी ....|’’


  सुनील कुमार ‘सजल’’

रविवार, 1 मई 2016

लघुव्यंग्य – रिकार्ड्स

लघुव्यंग्य – रिकार्ड्स

सापों के बीच एक युवक ने चार सौ दिन रहने का रिकार्ड बनाया | पढ़कर खबर वे बोले –
‘’ जवानी से बुढापा आ गया हम तो रोज ही आस्तीन में सांप पाले फिर रहे फिर जाने क्यों ... इन ... बुक ऑफ़ रिकार्ड्स वाले हमसे नजर फिराए औरों को ढूंढ रहे हैं |


  सुनील कुमार ‘’सजल’’

लघुव्यंग्य - भ्रष्ट क्यों ?

लघुव्यंग्य 01-   भ्रष्ट क्यों ?

कसबे की किसी शासकीय शाला में शिक्षकों द्वारा अवैध वसूली की जा रही थी |जो चर्चा का विषय बनी हुई थी |
  एक शाम चाय की दूकान में बैठा एक पालक उसी शाला के शिक्षक से कटु शब्दों में कहा –आज के शिक्षक ,शिक्षक नहीं रहे नंबर एक के भ्रष्ट |जब चाहा कभी इस बात के लिए चन्दा कभी उस बात के लिए चंदा  वसूली कर ली |कहीं से कुछ नहीं मिलता तो अभिभावकों के जेब में हाथ डालते हैं |जबकि ईश्वर तुल्य है |परन्तु उसने भ्रष्ट आकांक्षा में डूबकर पद की गरिमा कि नारकीय गर्तों में पहुंचा दिया | क्या होगा इस देश का और जाने क्या देते होंगे छात्रों को | जब स्वयं भ्रष्ट हैं |शिक्षक बहुत देर से उसकी बात सुन रहा था |अत: प्रश्नात्मक अंदाज में बोला | ‘’ जब साड़ी दुनिया ब्रष्ट है तो सिर्फ शिक्षक कि तरफ ही अंगुलिया क्यों उठायी जाती हैं | लोग अपने गिरेबां में झांककर क्यों नहीं देखते ?और उन्हें भ्रष्ट बनाने वाले कौन हैं कभी सोचा आपने ? इसी युग के लोग | ज़रा उच्च कार्यालयों में जाकर देखो तो वस्तुस्थिति का पता चले |हर छोटे से छोटे , बड़े से बड़े क्लेम को पास कराने के लिए वहां के कर्मचारी किस तरह शिक्षक कि जेब कि तरफ गिद्ध दृष्टि जमाये रहते हैं ?अपनी गिनी –चुनीतनख्वाह के भरोसे जीविका चलाने वाला शिक्षक कहाँ से  करे इन गिद्धों की भूख की व्यवस्था ? ऐसे में वह भ्रष्ट नहीं बनेगा तो करेगा क्या ? उस वह पद की गरिमा देखे या पेट की ज्वाला ? कोई उसके पास अलाउद्दीन का जिन्न तो है नहीं जिससे वह व्यवस्था कराता फिरे | वह तो वाही कर रहा है जो युग चाह रहा है | फिर वह कहाँ से भ्रष्ट हुआ ....? शिक्षक कहे जा रहा था | और वह अभिभावक खामोशी ओढ़े निरुत्तर ..........|

सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

शनिवार, 16 अप्रैल 2016

लघुकथा – आखिर

लघुकथा – आखिर

उनके तम्बाखू  खाकर थूकने की आदत पर उंगली उठाते हुए ये बोले –‘’ क्या यार अभी साफ़ – सुथरा किया और तुमने आँगन में पिच्च से थूक दिया .... कम से कम साफ़-सुथरी जगह पर गन्दगी फैलाने पर बाज आया करो |’’
‘’ का ... बोले ..हम गन्दगी फैलाते हैं.... अरे भई हमारे पार्टी के मंत्री आदव(यादव ) जी जब अधिकारियों को साफ़ सफाई रखने की चेतावनी देकर पिच्च से वाही थूक देते हैं तो हम उनके गुणों का अनुकरंज कर , का बुरा करते  हैं ...आखिर वे हमारी पार्टी के गुरु जो ठहरे ....|

सुनील कुमार ‘सजल’