रविवार, 8 मई 2016

लघुव्यंग्य - पानी और ....?

लघुव्यंग्य   - पानी और ....?

जिले की स्वच्छता अभियान से जुडी एक अधिकारी  महोदया सुबह-सुबह एक गाँव की तरफ अपनी गाडी में सवार होकर भ्रमण को निकली | देखा पूरा गाँव शौच के लिए मैदान की तरफ बढ़ रहा है | उन्होंने एक शौच जाते व्यक्ति को रोका  |कहा- ‘’क्यों मिस्टर..! क्या घर में टायलेट नहीं है  ? पंचायत सचिव ने निर्माण नहीं कराया ?’’ मैडम ने एक साथ चार छ: सवाल दाग दिए |
‘’ मेडम जी काहे नाराज हो रही हो |सचिव साहब ने सब-कुछ बनवाया है हमारे घर में  ....|’’
‘’ फिर उनका इस्तेमाल क्यों नहीं करते ...|मैदान में जाते हुए शर्म नहीं आती ..|
‘’ आती तो हो मैडम पर करें का ,,,...|’’
‘’करें का मतलब...?क्या कहना चाहते हो ...?’’
‘’सचिव साब को एक आदेश और दे देती ...|किस बात का आदेश...|
‘’गाँव के हर एक परिवार के इस्तेमाल के लिए रोजाना दस-बीस बाल्टी पानी की व्यवस्था और कर देते ...|
‘’अब टायलेट बनवाने के बाद पानी की व्यवस्था वही करे ... क्या बेवकूफ जैसी बात करते हो ...|’’
‘’ बेवकूफ हम नहीं ...प्रशासन है मैडम जी  .. जहां पीने के पानी के लिए लोग तीन-चार  किलोमीटर दूर जा रहे उन्हें टायलेट में फ्रेश होने की सलाह दी जा रही ...| आप ही बताइये का हम रोज उसमे यूँ ही बैठ के आ जाया करेंगे ...|’’
मैडम की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ गयी |

   सुनील कुमार ‘’सजल’’



शनिवार, 7 मई 2016

लघुकथा -प्रतिष्ठा

लघुकथा  -प्रतिष्ठा

‘’ सरकारी स्कूल....! हूं....!मैं तो भूलकर भी तुम्हारी तरह अपने बच्चों का एडमिशन किसी सरकारी स्कूल में नहीं करा सकती |’’ शीला ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए अपनी सहेली से कहा |
‘’ पर शीला एक बार ज़रा उस स्कूल के रिजल्ट की तरफ भी तो देखो...| बोर्ड परीक्षा में पांच छात्रों ने मेरिट में स्थान बनाया है और दर्जन भर फर्स्ट डिविजन हैं ...|’’ राधा ने शीला को समझाते हुए कहा |
‘’ तो क्या हुआ...? अरे लोग पूछेंगे तो हम पर हसेंगे ही ना... कि हर तरह से सक्षम होते हुए भी हम गरीबों की तरह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं ....| सक्षम होते हुए भी हम अपने बच्चों का एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में नहीं करा सकते थे ...| यहाँ तो समाज में प्रतिष्ठा का सवाल है ......आखिर हम कमाते किसके लिए हैं ....?’’
शीला के इस तर्क पर आखिर राधा को चुप रहना ही पड़ा |


   सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

शुक्रवार, 6 मई 2016

लघुकथा -बल्कि

लघुकथा  -बल्कि

वह शादी के दस साल बाद मां बनने जा रही थी | पड़ोसनों ने उससे से कहा –‘’ अगर लड़की हुई तो क्या करोगी ...|वैसे भी आजकल लड़की का जन्म होना माता-पिता के सिर पर पहाड़ टूटने के समान है |’’
‘’लड़की हो या लड़का......हमें तो संतान होने से मतलब है |’’ उसने सहजता से उत्तर दिया |
‘’ शायद इसलिए न कि इतने साल बाद मां बनने जा रही हो ...|’’एक ने कटाक्ष शैली में कहा |
‘’ इसलिए नहीं ...|’’ ‘ उसने भी उसी लहजे में जवाब दिया –‘’ ‘’ बल्कि इसलिए कि अगर लड़की हुई तो तुम्हारे लडके की तरह समाज का एक लड़का अधेड़ कुंवारा नहीं बना बैठा रहेगा और लड़का हुआ तो तुम्हारी लड़की की तरह ढलती उम्र में वर के लिए नहीं इंतज़ार करेगी .....| ‘’ उसका चुभता जवाब सुनकर बाकी महिलाएं एक –दूसरे का मुंह देखती रह गयीं |

   सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

बुधवार, 4 मई 2016

लघुकथा – फर्ज

लघुकथा  फर्ज

रेशमा और पिताजी के बीच सुबह-सुबह ही काफी बहस हो गई थी | पिताजी के बाजार चले जाने के बाद मां ने रेशमा को समझाने के अंदाज में डांटते हुए कहा- ‘’ रेशमा तुझे कितनी बार समझाया कि अपने पापा से जुबान मत लड़ाया कर | पर तू मानने से रही | मैं देख रही हूँ कि तमीज के नाम पर तू दिनों-दिन मर्यादा को लांघती जा रही है |’’
‘’ मम्मी पहले पापा को समझाओ वो मुझसे कैसे – कैसे सवाल करते हैं |’’रेशमा पैर पटकते हुए बोली |
‘’ भला ऐसा कौन –सा प्रश्न कर दिया उन्होंने तुझसे ?’’
‘’ यही कि तू कल कॉलेज में जिस लडके के साथ घूम रही थी , वो कौन है ?रोजाना पार्क में क्यों जाती है ?और भी कई उलटे-सीधे सवाल ?’’
‘’ तो क्या हुआ....वो तेरे पिटा हैं | तुझ जैसी जवान कुँवारी लड़की की खोज-खबर रखना उनका फर्ज है | ज़माना ठीक नहीं है |’’
‘’ तो क्या केवल कुँवारी लड़की की ही खोज-खबर रखना उनका फर्ज है ? अगर शादी-शुदा होती और गलत कदम उठाती तो क्या मुझसे नजरें चुरा लेते ?क्या केवल कुंवारी लड़कियां ही गलत रास्ते पर जा सकती हैं | शादी-शुदा नहीं ?’’
रेशमा ने मां के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी | प्रश्नों के बोझ तले झुक  चुकी थी | आखिर वे भी एक प्राइवेट कम्पनी में क्लर्क हैं , जहां पुरुष कर्मचारियों की भीड़ अधिक है .....|


सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

मंगलवार, 3 मई 2016

लघुव्यंग्य – बाजार मूल्य

लघुव्यंग्य बाजार मूल्य

रमिया अपनी मां के साथ उसी डाक्टर के पास दूसरी बार गर्भपात कराने पहुंची तो डाक्टर से रहा नहीं गया | ‘’ इस तरह कब तक इसका गर्भपात कराकर इज्जत बचाती रहोगी .....इससे अच्छा इसकी शादी क्यों नहीं कर देती |’’ उसने रमिया की मां को सलाह देते हुए कहा |
‘’ दक्ताएर साब....हम लोग देह धंधे वाले ठहरे | हमें इज्जत की नहीं ग्राहक की जरुरत होती है | इसकी शादी करा दूंगी तो वर्त्तमान बाजार मूल्य कहाँ रह जाएगा .. जो आज लोग बिना मोल-भाव किए नोटों की गद्दिया फेंक जाते हैं |’’
डाक्टर की चकित नजरें अब कलम के साथ दवा पर्ची पर घिसटती चली जा रही थी |

  सुनील कुमार ‘’सजल’’



सोमवार, 2 मई 2016

लघुव्यंग्य – पैसा

लघुव्यंग्य पैसा

बिजली संकट चल रहा था |पत्नी कई दिनी से जिद कर रही थी  | इनवर्टर खरीद लाओ | लेकिन ठंडी  सिकुड़ी जेब के कारण हर माह मिलाने वाले वेतन के दौर में भी मैं सोच कर रह जाता |
एक दिन पत्नी मुझसे से कहा-‘’ बाबूजी के लिए हर माह सात-आठ रुपये की दवाएं तो आती होगीं |’’
‘’हाँ क्यों नहीं |’’
‘यहाँ कि दुकानों में नकली दवाएं तो मिलाती होंगी |’’
‘’ हाँ...क्यों नहीं वह तो पूरे देश में बिक रहीं हैं | मगर यह सब क्यों पूंछ रही हो ?’’
‘’ मैं सोच रही थी .. इनवर्टर किस्तों में उठा लेते और बाबूजी के लिए उतनी नकाक्ली दवाएं ला दिया करते उनसे जो पैसे बचते उससे इनवर्टर की क़िस्त जमा हो जाती और बाबू जी को हर माह दवा मिलाने की सांत्वना रहती |हमें इनवर्टर पाने की ख़ुशी ....|’’


  सुनील कुमार ‘सजल’’

रविवार, 1 मई 2016

लघुव्यंग्य – रिकार्ड्स

लघुव्यंग्य – रिकार्ड्स

सापों के बीच एक युवक ने चार सौ दिन रहने का रिकार्ड बनाया | पढ़कर खबर वे बोले –
‘’ जवानी से बुढापा आ गया हम तो रोज ही आस्तीन में सांप पाले फिर रहे फिर जाने क्यों ... इन ... बुक ऑफ़ रिकार्ड्स वाले हमसे नजर फिराए औरों को ढूंढ रहे हैं |


  सुनील कुमार ‘’सजल’’