सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

लघुव्यंग्य - आदेश


लघुव्यंग्य - आदेश 

सरदार के सामने वे तीनो सर झुकाए खड़े थे || सरदार ने एक-एक के चहरे पर नजर दौडाते हुए कड़क आवाज में प्रश्न किया – ‘’ आज कितनों को लुढ़काकर आए हो |’’


‘’सरदार आठ को |’


‘’क्यों? मैंने तुम्हें तेरह के लिए कहा था न बेवकूफों |’’


‘’ उनमें से पांच तो वैसे भी गंभीर बीमारी से ग्रस्त होने के कारण मरने योग्य हैं सरदार ....आखिर उनको मारने से  फ़ायदा क्या है |’’


‘’ अरे हरामजादों |’’ सरदार चीखा –‘’ आतंक फैलाने के लिए बीमार व चुस्तों के बीच विभाजन नहीं किया जाता कुत्तों ... अभी जाओ उन्हें भी लुढ़काकर आओ ...वरना उनकी किस्मत की गोली में तुम लोग होगे ....|’’


वे तीनो बिना देरी किये झटपट हथियार उठाकर किसी पालतू कुत्ते को मिले ‘’आदेश’ की तरह चल पड़े उन लोगों की झोपड़ियों की ओर....|


      सुनील कुमार ‘’सजल’’  


 

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

लघुव्यंग्य - इष्ट

 लघुव्यंग्य - इष्ट वे पार्टी के छोटे कद के नेता हैं |एक शाम उन्होंने मुझे अपने घर पर बुलाया |मैंने देखा उनके घर में जहां –तहां दीवारों पर वतमान नेताओं के फोटो कीमती फ्रेम में लटके थे | दो –चार फोटो पर फूलमाला भी चढ़ी थी | ‘’ लगता है आप ईश्वर की अपेक्षा इन नेताओं को अपना ईष्ट मानते हैं |’’मैंने उनके मन की बात का पता लगाने का प्रयास किया तो वे मुस्कुरा कर बोले -=’’ अच्छा आप बताइये ....आप भी एक महान संत को अपना इष्ट मानते हैं क्यों |’’‘’ वे सच्चे संत हैं ...उनकी दी शिक्षा से जीवन सफल हुआ है |’’’ मैंने कहा |वे बोले –‘’ बस यही बात हम पर भी लागू होती है ....इन्हीं इष्ट नेताओं से मिली प्रेरणा शक्ति से हम भी राजनीति में अपना जीवन सफल बनाते जा रहे हैं ...अगर आप संतों का पूजन करते हैं तो आपकी तरह हम भी इन नेताओं की पूजा कर रहे हैं तो क्या बुरा कर रहे हैं ...कहिये |’’मैंने कुछ बोले बगैर टेबल पर आयी चाय के कप को होठों से लगा लिया था |सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

गुरुवार, 15 सितंबर 2016

लघुव्यंग्य – दर्शन

लघुव्यंग्य – दर्शन

वे प्रतिदिन मंदिर में देवी-दर्शन के लिए जाते , लेकिन ‘’ देवी-दर्शन’ के बहाने वहां आने वाली महिलाओं के दर्शन में ज्यादा रुचि दिखाते |
अक्सर उनके साथ रहने वाले एक मित्र ने एक दिन उनकी इस हरकत पर अंगुली उठाते हुए कहा-‘ क्यों भाई मैं अक्सर देखता हूँ कि तुम मंदिर में देवी-दर्शन के बहाने महिलाओं को घूरते रहते हो .. क्या यह अच्छी बात है .. इससे तुम्हारी अध्यात्मिक भावना भंग नहीं होती ...|’’
उन्होंने अपनी चोरी पकडाते हुए देख कर अपने जवाब में वजन लाने के प्रयास से  कहा – ‘’ क्या महिलायें ‘’ देवी’’ का रूप नहीं हैं ?अगर उनमें देवी रूप सौन्दर्य का दर्शन कर आत्मिक शान्ति पाटा हूँ तो क्या बुरा करता हूँ |’’

सुनील कुमार ‘सजल’’

  

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

लघुव्यंग्य – कष्ट के पीछे

लघुव्यंग्य – कष्ट के पीछे

कोर्ट के आदेश के उपरांत नगर की ट्रैफिक पुलिस बिना हेलमेटधारी दोपहिया वाहन चालकों के प्रति हरकत में आ गई थी |उन्हें जबरिया पकड़कर कार्यवाही कराती या फिर उनके साथ चलाकर उन्हें दूकान से हेलमेट खरीदने हेतु बाध्य कर रही थी | उनकी ड्यूटी स्थल ज्यादातर उन स्थानों पर होता जहां दुकानों में हेलमेट इत्यादि आसानी से उपलब्ध थे |
  हमने ट्रैफिक पुलिस के एक जवान मित्र से पूछा – ‘’ आप चालकों को दुकानदार के पास पकड़कर ले जाते हैं अच्छा यही हो कि उनकी गलती पर सीधे तैर पर जुर्माना ठोंककर कार्यवाही कर दीजिये ... फालतू में अपना टाइम वेस्ट करते हैं ... और दुकानदार तक जाने की जहमत उठाते हैं ?’’
‘’ हम पुलिस वालों के लिए टाइम वेस्ट ... जहमत ?  ‘’ वे हंसते हुए बोले –‘’ अरे भाई अगर आरोपी तत्काल हेलमेट खरीद लेता है तो हमारा कमीशन दुकानदार से बन जाता है ... वरना उसका चालान तो बनायेंगे ही | वे आगे बोले – ‘’ अपन पुलिस वाले हर कष्ट के पीछे अपनी जेब गरम कृत्र ही हैं मेरे भाई |’’


सुनील कुमार ‘सजल’’ 

शुक्रवार, 2 सितंबर 2016

लघुव्यंग्य – अंतत:

लघुव्यंग्य – अंतत:

शिक्षा अधिकारी ने एक स्कूल में निरीक्षण में पाया, छात्रों को दिए जाने वाला मध्यान्ह भोजन मीनू के अनुकूल नहीं दिया जा रहा है | उसने संस्था के कर्मचारियों एवं ठेके पर प्रतिदिन भोजन पकाने वाले समूह के सदस्यों को फटकारते हुए धमकाया | उनकी बातें सुनते-सुनते समूह के एक अधेड़ व्यक्ति ने आखिर अपना मुंह खोल दिया – ‘’ सरकार आपके द्वारा जो हमें राशि भुगतान की जा रही है , उससे अगर आप मीनू के अनुसार एक दिन बच्चों के भोजन की व्यवस्था कर दें तो मैं तीन दिन का भुगतान आपके खाते में जमा कर दूंगा ...| इस मंहगाई के दौर में में हम इस योजना को मात्र इसलिए घसीट रहे हैं ताकि हमारे व पास – पड़ोस के बच्चे स्कूल में बने रहें ...| इसके पहले कितने ही समूह इस काम को छोड़कर जा चुके हैं ...यह बात आपको भी मालूम है ....|’’ उसकी बात पूरी होते ही अगल-बगल झांकते अधिकारी ने तुरंत समझाईश देते हुए बोले –‘’ अरे नहीं ...नहीं.. इस व्यवस्था को आप लोग ही चलाइये , हम लोग यूं ही डांटते फटकारते हैं ... हाँ मगर खाना –पीना साफ़-सुथरा और अच्छा देते रहना ...|

          सुनील कुमार ‘’ सजल’’


रविवार, 28 अगस्त 2016

लघुव्यंग्य – धंधा

लघुव्यंग्य – धंधा

चमन भाई को अपने धंधे में अचानक काफी नुकसान उठाना पडा |धंधे में लगी साड़ी पूंजी मटियामेट हो गयी |थोड़ा बहुत जो पास में था वह साहूकारों के कर्ज पटाने में चला गया |चमन को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें ? घर की माली हालत पर तनाव भरे आंसू बहाते उन्हें जाने क्या सूझा कि वे अपनों से थोड़ा सा कर्ज लेकर अवैध शराब बनवा कर बेचना शुरू कर दिया | इस पर प्रतिक्रया करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने उनसे कहा –‘’ यार भई आप तो एक इज्जतदार आदमी हैं अपनी इज्जत को दांव पर लगाते हुए यह क्या अवैध थर्रा बेच रहे है हैं | कम से कम धंधा तो ऐसा करते जिसमें इज्जत की भले ही एक ही रोटी मिलती | यह काम तो ...?’’
‘’भाई अगर यह इज्जतदार लोगों का धंधा नहीं है तो आप जैसे इज्जतदार लोग रोजाना शाम को कल्लू के घर हलक में गिलास दो गिलास वही ठर्रा उदालने क्यों जाते हैं ? कही ?””

   सुनील कुमार ‘’सजल’’


बुधवार, 6 जुलाई 2016

लघुकथा –फोन टेपिंग

लघुकथा –फोन टेपिंग

नेताजी कई दिनों से मायूस चल रहे थे | पार्टी व आम जनता के बीच उनकी कोई खास पूछ-परख नहीं हो रही थी |
एक दिन एक चमचे ने उनसे कहा-‘’ अगर यूं ही आप उपेक्षित होते रहे तो समझिये आपकी नेतागिरी का बल्ब एक दिन फ्यूज होकर रह जाएगा |’’
‘’ वाही तो मै भी सोच रहा हूँ प्यारे क्या करून ?’’
काफी गहन विचार कर चमचे ने उनसे कहा- ‘’ मेरी खोपड़ी में एक उपाय कुलबुला रहा है |’’
क्या?’’
‘’ मीडिया में खबर फैला दीजिये कि आपकी गोपनीय बातों का विपक्षी ‘’ फोन टेपिंग’’ कर रहे हैं ...फिर देखी सबका ध्यान आपकी ओर खिंच जाएगा और आप मरू में सींचे गए पौधे की तरह फिर से हरे भरे...|’’
‘’ वाह बेटा..| ‘’ नेताजी उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले –‘’ आज यह फार्मूला राजनीति में खूब फल-फूल रहा है ...|””
अगले दिन से अखबारों में समाचारों की शुरुआत उनके “” फोन टेपिंग”” वाली खबरों से हो रही थी | 

सुनील कुमार ‘’सजल’’