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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

लघुव्यंग्य- जैसा अन्न

लघुव्यंग्य- जैसा अन्न

बेटे की आवारागर्दी व फिजूल कर्च गतिविधियों पर क्रुद्ध पिटा ने बेटे पर चिल्लाते हुए कहा- ‘’ सूअर मैंने यह धन यूँ ही इकट्ठा नहीं किया है तेरे लिए..कितनो से झपटा कितनो का दिल दुखाया कितने पाप किए तब कहीं जाकर तेरी जिंदगी बनाने के लिए धन जोड़ा और तू हाथ पर लगे मेल की तरह धो-धो कर लुटा रहा है ... तुझे ज़रा भी कसक नहीं ... कमीने अब तो सुधर जा...|’’
‘’ आप क्या समझते हैं , सुधर जाउंगा ... कदापि नहीं क्योंकि मेरी रगों में आपके भ्रष्ट कृत्यों का रक्त जो बह रहा है ... जैसा आपने मुझे अन्न खिलाया है... वाही माकन व कर्म होंगे ... काश | आपने मुझे इमानदारी का अन्न खिलायाका होता तो ...?
 बेटे का दो टूक जवाब सुनकर यूँ लगा मानो उनकी छाती पर किसी ने कील ठोंक दी हो |


सुनील कुमार ‘’ सजल’’

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

लघुव्यंग्य –सेवा

लघुव्यंग्य –सेवा

सूर्य उत्तरायण हो चुका था |गरमी अपने शबाब पर थी |किसी कार्य से अपने मित्र वर्मा के साथ एक शहर को जाना हुआ |हम दोनों पानी की बोतल रखना भूल गए थे |प्यास जोरो से लगी थी |रास्ते में पड़ने वाले एक बस  स्टैंड पर बस रुकी | बस से उतरने के बाद हम दोनों प्यास बुझाने के लिए सीधे होटल की ओर गए |वर्मा जी बैरे से पानी माँगा |
उसने टंकी में रखा कुनकुना –सा पानी भरा गिलास हमारी ओर बढ़ा दिया |दो-चार घूँट पानी पीने के बाद वर्मा जी बेयरे से बोले –‘’ क्यों भाई ठंडा पानी नहीं है क्या ?ये तो कुनकुना रखा है |दस गिलास पी जाएं तो भी प्यास नहीं बुझेगी |’
‘’ कुछ खरीदी साहब तो हम तीन गिलास ठंडे  पानी से आपकी प्यास तर कर देंगे | मुफ्त का पानी पीने वालों के लिए यही सेवा है हमारे होटल में ....| हम किसी  को निराश नहीं करते किसी को |’’
हम दोनों आश्चर्य से उस बेयरे का मुंह ताकते  रह गए |


सुनील कुमार ‘सजल’’ 

रविवार, 31 जनवरी 2016

लघुव्यंग्य –व्याकुलता

लघुव्यंग्य –व्याकुलता

पड़ोसी यादव जी के यहां बकरी ने एकाध माह पूर्व दो मेमनों को जन्म दिया था |वे मेमने को किसी बाहरी सौदागर के हाथ सौदा करते हुए सौंप रहे थे | रस्सी में बंधी सारा नजारा देखती बकरी अपने बच्चे को दूसरे के हाथ में देखकर व्याकुलता से मिमिया रही थी | बार-बार रस्सी तोड़ने को प्रयास करती पर हर बार असफल हो जाती |
सौदा तो हो चुका था | सौदागर निकल चुका था |
उधर श्रीमती यादव काफी बैचैन थीं | वे सभी से पूछ रही थी – ‘ चुन्नू बहुत देर से नही दिख रहा है ? आपके यहाँ है क्या ? कहीं तालाब की तरफ तो नहीं गया ? काफी खोजबीन के बाद पता चला कि पड़ोस में बच्चों के साथ खेल रहा है | तब कहीं जाकर उनकी जान में जान आयी |
घर लौटकर आँगन में कड़ी वे खुशी –ख़ुशी दी गयी रकम गिन रही थी |इधर मातृत्व नारों से ओझल हुए मेमने की व्याकुलता में बेचारी बकरी ममता भरी आवाज में अभी भी मिमिया रही थी |


सुनील कुमार ‘सजल’ 

रविवार, 24 जनवरी 2016

लघुव्यंग्य- क्योंकि

लघुव्यंग्य- क्योंकि

दोपहर में दफ्तर से लौटते वक्त उन्हें रास्ते में पड़ी एक कीमती घड़ी मिल गयी | वे उसे उठाकर घर ले आए | शाम के वक्त जब उन्हें एक नेता – मित्र मिले तो उनसे बोले- ‘’ रास्ते में आज मुझे घड़ी मिली | पर इसे धारण करने में मन हिचकिचाटा है | ‘’
क्यों ?’’ नेता मित्र ने पूछा |
‘’ जिस किसी को भी होगी ... गम होने पर उसका दिल तो रोया होगा | फिर ऐसी प्राप्त चीजें फलदायी नहीं होती | इसकी भरपाई कहीं न कहीं से हो जाती है |’’ उन्होंने कहा | ‘’ रुको...अगर तुम इसे नहीं रखना चाहते तो दे दो | अपने को हर दशा में हर चीज फलित होती है क्योंकि अपन तो नेता हैं |

सुनील कुमार ‘सजल’ 

बुधवार, 25 नवंबर 2015

लघुव्यंग्य कथा – किराया

लघुव्यंग्य कथा – किराया


पिछले दो माह से वेतन नहीं मिला था |पत्नी कहने लगी | ऐसा कैसा दफ्तर है और अफसर वेतन का भुगतान नहीं करा सके | ‘’
मैंने कहा –‘’ कभी-कभी दफ्तर में काम का बोझ इतना बढ़ जाता है कि ऐसी स्थिति बनना स्वाभाविक हो जाता है |
‘’ राम जाने लोग तो पहले पैसे को महत्त्व देते हैं , पर आप लोग ...?पत्नी में कहा |
मैंने कहा-‘’ तुम नहीं समझोगी रीता ....| काम अपनी जगह पर...|
पत्नी बीच में बोल पड़ी ... खैर छोडो भी ...कहो तो मायके खबर भेजकर भाई साब के हस्ते कुछ रुपये बुलावा लूं ...|
मैंने कहा – ‘ तुम रुपये तो बुलावा लो मगर आदत के अनुसार फिर कहोगी उन्हीं रुपयों में से उन्हें आने जाने का किराया भी दे दो...| पत्नी मेरी बातों पर कुछ खीझ सी गई ... ‘’किराया ... किराया देना आपको चुभ रहा हैं ... और अगर किसी साहूकार से कर्ज पर रुपये उठाओगे तो वह अपना रिश्तेदार तो है नहीं जो बिना ब्याज के रुपये दे दे | भाई को किराया दे दिया तो कम से कम भविष्य में आपके हमारे प्रति उसकी आत्मीयता व सहायता कि इच्छा तो बनी रहेगी .... मगर साहूकार ? जब तक उसके धंधे के सहयोगी रहोगे , तब तक आत्मीयता दिखाएगा इसके बाद दुत्कार देगा ....? ‘’
पत्नी कि समझाइश भरी बातें अपनी जगह पर शत-प्रतिशत ठीक तो थी पर जानें क्यों किराया देने वाली बात मुझे चूकवश अंगुली में गड़ी हुई सुई की भाँती चुभती महसूस हो रही थी |

     सुनील कुमार सजल 

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

लघुकथा –पति

लघुकथा –पति

उसकी उम्र पचास को छू चुकी थी |महीना भर पहले ही उसे लकवा मार गया था | सो वह अपंग बना खाट पर पडा दिन गुजार रहा था परन्तु पत्नी को उसकी पीड़ा पर तनिक भी दुःख न था |
 लोग उसे समझाने आते , ‘’ पति है, ऐसे वक्त पर उसकी सेवा करो | पति तो देवता तुल्य होता है |’’
 लोंगो की समझाइश सुनते –सुनते लंबे समय तक पति के जुल्म से दबी – कुचली पत्नी के अन्दर की चीख एक दिन मुंह से बाहर निकल आई , ‘’ जब यह स्वस्थ था, जवान था , तब इसने मुझ पर जानवरों की तरह जुल्म ढाए | मुझे टुकड़ा भर रोटी के लिए भी इसने तरसा – तरसाकर  रहा | तब आप लोग कहते थे कि पति तो देवता है , जैसा भी है , उसके साथ निबाहकर जीवन गुजारो और अब यह अपने कर्मों का दंड भुगत रहा है तो आप लोग कह रहे है कि इसकी सेवा करो क्योंकि पति देवता तुल्य होता है | मैं आप लोगों से पूछती हूँ कि पति देवता तुल्य होता है तो मैं उसकी पत्नी हूँ , ऐसे में मैं क्या हूँ ? गुलाम या देवी ?’’
 उस दिन से लोग खामोश होकर उसे समझाइश देना भूल गए |

                 सुनील कुमार ‘’सजल’’

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

लघुकथा – सोच

लघुकथा – सोच

बाबू श्याम लाल अपने बड़े लडके प्रमोद की करतूतों से काफी परेशां रहते |वह हमेशा झगड़े – फसाद , लड़कियों से छेड़छाड़ आदि में ही मशगूल रहता था | खेत्र के तमाम आवारा लड़कों के साथ उसकी संगति थी |
 एक दिन वह किसी गंभीर मामलें में पुलिस द्वारा धर-दबोचा गया \ घर में बैठे शर्मा जी श्याम  बाबू को  को समझा रहे थे | -‘’ ‘’ श्याम भाई , जाओ कुछ ले- देकर प्रमोद को छुडा लाओ \ आखिर बेटा तो आपका ही है \ कल खबर जहाँ – तहां फैलेगी तो उसमें तुम्हारी ही बदनामी होगी न | ‘’
   पर श्याम लाल टस से मस  नहीं हुए | वे प्रमोद की ओर से पूरी तरह बेफिक्र थे | मानो कुछ हुआ ही न हो | शर्माजी के बार-बार उकसाने पर वे खीझते हुए बोले- ‘’ अरे जाने दो यार | ऐसे पुत्र से तो उसका न होना ही बेहतर है | हराम खोर ने मुझे कहीं का का न छोड़ा है |
    अगले दिन पूरे गाँव में यह खबर फ़ैल गयी कि प्रमोद पुलिस हिरासत में मारा गया | शायद रात में पुलिस ने उसे बुरी तरह टार्चर किया था | 
     इधर श्याम लाल जी बेटे की मृत्यु की खबर पाकर खाट पर बेहोश पड़े थे \ उन्हें जब भी होश आता, बस यही दोहराते –‘’ मेरा एक हाथ चला गया \ अब मेरा जीना बेकार है |’’

       सुनील कुमार सजल 

शुक्रवार, 29 मई 2015

लघुव्यंग्य – पहुँच


                      लघुव्यंग्य – पहुँच



दफ्तर में आज अधिकारी नहीं थे | अत: कर्मचारीगण भी फाइलों को दरकिनार कर्र बरामदा में बैठे गप्पबाजी में अपना टाइम पास कर रहे थे |अचानक उनकी चर्चा में ‘चरित्र’ आ गया | उसी विषय पर चर्चा होने लगी |
 इतने में एक भिखारी आया | भीख में उसे तो-तीन रुपये मिल गए | धुप तेज थी , इसलिए कुछ देर सुस्ताने के मकसद से वहां बैठकर वह उनकी बातें सुनाने लगा |

शर्मा जी ने विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा – ‘’ भाई !  रिया को ही देख लो | पूरे क्षेत्र के लोग जानते हैं कि नेता व् अफसरों से किस तरह के संबंध हैं उसके | अपनी देह का सब कुछ अर्पित कर देती है ...| पिछली बार बड़े कार्यालय से गाँव के लिए कितने सारे विकास कार्य लेकर आई थी .... और यह सब अपनी ‘’ त्रिया चरित्र’’ का फार्मूला अपनाकर किया था |’’ सारे  कर्मचारी हाँ में हाँ मिलाकर बातों का मजा ले रहे थे | शर्माजी आगे बोले ‘’ अभी हाल की बात है सरपंच जिस राहत कार्य की मांग को लेकर बड़े कार्यालय के दो माह से चक्कर काट रहा था , उस रिया ने उनका साथ देकर दो दिन में गाँव में राहत कार्य खुलवा दिए | जबकि सब जानते हैं उसके पास कोई राजनैतिक पद नहीं है | फिर भी इतनी पहुँच....|’’
बीच में ही मलिककह उठा- ‘’ साली बड़ी हस्तियों के बिस्तर पर....खेलती होगी |’’
 ‘’ और नहीं तो क्या..... |’’ शर्मा अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पाया कि बहुत देर से सुन रहा वहीँ खडा भिखारी नुमा व्यक्ति बोल पडा –‘’ साब जी !आप भूल  रहे हैं बात छोटे स्तर कि या बड़े स्तर की हर जगह की राजनैतिक व् प्रशासनिक व्यवस्थाएं ‘’ पामेला’ व् मोनिका जैसी औरतों के इशारों पर नाच रहीं हैं | जिनके बदन से उड़ाते मधुर पसीने की नशीली गंध से मदमस्त हो चुका है ‘’पहुँच’ का पूरा वातावरण तो फिर अधिकारी कौन से खेत कि मूली हैं ? आखिर हैं तो साधारण इंसान न | सबकी प्रश्नात्मक दृष्टि अब भिकारी की ओर....थी |
 सुनील कुमार’’सजल’’