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मंगलवार, 12 मई 2015

व्यंग्य –आतंकवाद



व्यंग्य –आतंकवाद
देश में बढ़ रहे आतंकवाद को लेकर गांव की ग्राम पंचायत में आतंकवाद के विरुद्ध देश वासियों की भूमिका विषय को लेकर एक सामान्य विचार विमर्श गोष्ठी का आयोजन किया गया था |
गोष्ठी में भाग लेने हेतु सामान्य जनों के अलावा प्रतिष्ठित नागरिक एवं समाज सेवी सेठ राम पुकार जी को भी आमंत्रित किया गया था |
गोष्ठी चल रही थी | सेठ जी अपने विचार प्रकट कर रहे थे | तभी उनकी नजर अपने ही नौकर अखरू पर पड़ी | वह बोलते हुए अंदर ही अंदर उबल  पड़े | पर अपने आप को उन्होंने नियंत्रित कर लिया |
उनका वक्तव्य समाप्त हुआ | वह कक्ष से बाहर आये | नौकर अखरूको पास बुलाया| उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जमाते हुए धीरे से चीखा- साले, तुम्हे खेत भेजा था या यहाँ सुनाने के लिए बुलाया था | तुम्हारा बाप करेगा खेत का काम ...साले कर्ज लेने से कभी चूकते नहीं | चुकाने की बारी में मुंह छिपाते हो और ऊपर से कहते हो काम करके चुकता कर देंगे ...चलो फूटो वरना हाथ-पैर तोड़ दूंगा ‘’ गाल पर दूसरा थप्पड़ की झनझनाहट और उनकी गुर्राहट के भय से अखरू आतंकवाद के सामने आम जनों की तरह टूट सा गया था |शायद उसके लिए यह आतंकवाद का साक्षात दर्शन था
 

सोमवार, 11 मई 2015

व्यंग्य-आओ बेरोजगारों ,संत बनें



व्यंग्य-आओ बेरोजगारों ,संत बनें


बाबा बनने का धंधा सौ बड़े धंधों से बेहतर है |हींग लगे न फिटकरी | बस जरुरत है जुबान से जादू भरी बातें फेंकने के गुण की ,तन पर गेरुआ वस्त्र , पाँव में खड़ाऊ, गले में असली या नकली रत्न या रुद्राक्ष माला , लम्बी दाढ़ी व सर पर लम्बे बालों की | जुगाड़ हो तो माथे पर चंदन का टीका पोटते ही बन गए बाबा ,कहलाने लगे संत |



  करने लगे  आध्यात्मिक राजनीति| सब जगह पूज्य | हर स्थान पर प्रतिष्ठा |शिष्यों की भीड़ ,अकूत धन भंडार ,सुंदर-सुंदर सेविकायें, आरामदायक सुसज्जित आश्रम ,भक्त व जनता की ओर से दिए गए चंदे से, अनगिनत एकड़ खेतिहर जमीन ,विदेश यात्रायें और क्या चाहिए एक बाबा को |



   साथ पढ़े लिखे हमारे एक मित्र हैं | नाम बता दूं रंजन जी | आजकल वे भी बाबा बन गए हैं ,घर घर धूमकर भिक्षा मांगनेवाले बाबा नहीं बल्कि आधुनिक ऐशो-आराम के बीच लोगों को उल्लू बनाकर अपने चरण चटवाने वाले बाबा | चरणों को धुलकर चरणामृत पिलाने वाले बाबा |कभी-कभी मन करता है उनकी आलोचना न करूं पर नातिक मन सब कुछ कर बैठता है |



   हालांकि एक बात पक्के तौर पर कहूँ |बाबा बनाना भी गॉडगिफ्ट है | हर किसी में यह शख्सियत या साहस नहीं होता की जनता या भक्तों को अपनी ओर आकर्षित कर सके |जैसे ऊंचाई प्राप्त नेता बनाना आसान नहीं हैं |छुटभैये नेताओं की बात छोड़ो जो नेतागिरी में उदयकाल से अस्तकाल तक छुटभैये बने रहकर सिर्फ अपना खर्चा पानी चलाते हैं |



   अरे यार, अपन तो भूल गए रंजनानंद जी की बात करते करते |



   एक दिन रंजनानंद जी हमारे गांव पधारे | गांव के लोगों ने उनका बड़ा स्वागत-सत्कार किया | जैसा कि गांव के लोग आमतौर पर दूध , दही,घी, मेवा, धन-दौलत, पूजा पाठ भजन कीर्तन आदि के द्वारा करते हैं, हमारी पुजारिन पत्नी भी उनके चरण स्पर्श करने से पीछे नहीं रही | लाख मना किए पर वह न मानी |आखिर दो सौ फल-फूल उन्हें अर्पित कर आयीं |



    हमने उसे समझाया –‘’ देखो, वह हमारा मित्र रंजन हैं | नंबर एक का बदमाश | अध्धयन काल में हम दोनों खूब मस्ती करते थे | लड़कियों को छेड़ते थे | कई बार तो छेड़छाड़ के चक्कर में पिटकर ‘’एक तरफा’ प्रेमी होने की शोहरत भी पाए थे | आज साला न जाने कैसे बाबागिरी के धंधे में कूद गया ?’’



    ‘’ देखो जी, किसी की निंदा करना सबसे बड़ा पाप है | अपनी जुबान से व्यंग्य व निंदा के कड़वे शब्दों को न निकालो | तभी तो तुम्हारी व हमारी पटरी नहीं बैठती |’’ वह तेज स्वर में बोली और हमें धर्म उपदेश भी दे गयी |



     ‘’ अच्छा यह बताओ ,तुमने अपने पवित्र हाथों व माथे से उस बेवकूफ के चरण स्पर्श किए , कभी हमारे चरण स्पर्श किए ? मुझे आज भी याद है शादी के दिन के अलावा तुमने कभी मेरे चरण स्पर्श नहीं किए होंगे |



    ‘’ उस लायक बनो |’’ तपाक से उसने एक धारदार शब्द हमारी ओर फेंका |



   उस दिन हमने पत्नी की जिद पर मित्रवत रंजनानंद जी को घर पर बुलाया | पत्नी ने हमसे आगे बढ़ –चढ़ कर उसका स्वागत किया जैसा किआमतौर पर पूजा – पाठ में मग्न घर द्वार , पत्नी – बच्चों की जरूरतों को घर के किसी कोने में कचरे की ढेर की तरह फेंककर आधुनिक पुजारिन पत्नियां कराती हैं | हमारा दिल बढ़ते बजट व लड़खड़ाती घरेलू व्यवस्था के समक्ष दीये की भांति जलता है |



   स्वागत सत्कार उपरांत हम दोनों यानी स्वामी रंजनानंद के साथ एक शांत कमरे में बैठे थे |जीवन के दौर में आए मुसीबतों की झंझावातों की चर्चा के साथ हमने उससे कहा-‘’ अबे , मेरी एक बात समझ में नहीं आई कि तू पढ़ा – लिखा मेरी तरह नास्तिक इंसान था, अचानक बाबागिरी का रास्ता कैसे पकड़ लिया |’’



   ‘’ तुम अब भी वहीँ हो | अब मैं तुम्हारा ‘’बे’’  नहीं रहा ,संत हूंसंत स्वामी रंजनानंद | ‘’ वह मेरे दोस्ताना तथ्य पर उंगली उठाते हुए बोला |



   ‘’ पर तू तो आज भी मेरे लिए रंजन है भले ही जमाने के लिए स्वामी रंजनानंद |पर तू यह बता कि बाबा क्यों बना |’’ मैंने फिर उसे छेदा |



  ‘’ बेरोजगारी ने मुझे बाबा बनाया |’’ उसने कहा |



  ‘’ क्या बेरोजगारी का हल बाबागिरी में है |’’ मैंने पुन: प्रश्न रखा |



  ‘’ मेरे हिसाब से मुझे मिला ‘’



  ‘’ मतलब क्या ? ‘’



  ‘’ तू जानता है मैंने रोजगार प्राप्ति के लिए कहाँ-कहाँ नाक नहीं रगड़ी | डिग्रियों को देखकर रोता था | तब ज़माना ने भी मुझे दुत्कारने में कसार नहीं छोड़ता था | फिर एक दिन एक पत्रिका में छपे लेख से मुझे प्रेरणा मिली | और जब प्रेरणा मिलती है तो रास्ते अपने आप मंजिल बताते हैं | मैंने भी सोचा क्यों न बाबागिरी का धंधा अपनाया जाए | बस बन गया स्वामी | दोस्त इस देश में धर्म व तंत्र के नाम पर स्वादिष्ट रोटियाँ प्राप्त करना कोई ज्यादा कठिन काम नहीं है | बस खुद में चालाकी, वाकजाल में लोगों को फंसाने की क्षमता व थोड़ा बहुत तथाकथित मनोविज्ञान व आध्यात्मिक ज्ञान होना आवश्यक है | फिर उल्लू दुनिया को राह दिखाने का बीड़ा उठाइये और बढ़ाते जाइए | सच कहूं, अध्यात्म धर्म व तंत्र मन्त्र की सुरंग में इतना भयानक अन्धकार है की इसमें भूली भटकी जनता प्रकाश पुंज स्वरूप अपने गुरु स्वामी को देखती है और उसके पीछे पीछे चलती है |’’ उसने धर्म नामक संसार को मुझे समझाया | 



    ‘’ मतलब किमैं भी यहीं करूं |’’ मैंने कहा |



    ‘’ मैं यह नहीं कह रहा  कि तू साधु बन पर एक बात कहूं, तू जीवन भर नौकरी कर नहीं कमा सकता, उतना मैंने चाँद साल में बटोर लिया | आज मेरे पास आधुनिक सुविधाओं से युक्त आश्रम ,वाहन, सुंदर –सुंदर सेविकायें, सेवक ,धन-धान्य ,जमीन , शिष्यों की भीड़ ,राजनैतिक आश्रम , शोहरत सब कुछ है | जिधर जुबान चलाता हूं वही से मेरे पास धन व शिष्य स्वरूप जनता , अफसर, नेता चले आते हैं | आज मेरे आध्यात्मिक कार्यक्रम को जन-जन तक पहुंचाने के लिए देशभर में मेरे एजेंट फैले हैं जो लघु आश्रम बनाकर मेरे नाम की लोगों से माल, जाप करा रहे हैं |



    उसने अपने नकाबपोश चेहरे का रहस्य बताया तो मैं अंदर तक दहल गया | फिर भी चेहरे पर एक झूठी मुस्कान लाकर मैंने कहा- ‘’ तू तो वाकई चतुर सियार निकला | पर तुझे अपना धंधा जमाने में अड़चन तो आई होगी |’



   ‘’ काहे की अड़चन | मैंने मनोविज्ञान ,दर्शनशास्त्र से एम.ए. किया है ही है | रेकी यानी स्पर्श चिकित्सा और सीख ली | बस इसी के सहारे करने लगा बाबागिरी | आज मैं प्रवचन देता हूं, जीने की राह दिखाता हूं | संतान से वंचित, बीमारी, धन अभावग्रस्त आदि लाचारी से लोगों को मुक्त कराने का प्रपंच रचता हूं |अपनी धर्मभीरू जनता को और क्या चाहिए, मीठी जुबान व सहानुभूति का स्पर्श |’’ उसने मुस्कुरा कर कहा |



 



   ‘’ मतलब तू ढोंगी है |’’ मैंने कहा |हालांकि अभी पूरी तरह से दोस्ताना अंदाज में बात कर रहे थे, इसलिए मेरी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा था |



  ‘’ असली संत को क्या आधुनिक सुविधा युक्त आश्रम चाहिए? उसे तो हिमालय की गोदमें मजा आता है | हां, इतना ध्यान रखना इसे धमकी समझो या दोस्ती का वचन, मेरी सच्चाई किसी से न कहना | अगर मैं फंसा तो तेरे दर तक तो आ चुका हूं | तुझे भी अपना तथाकथित एजेंट बता तुझे भी ले डूब मरुंगा |’’  और माफिया मुस्कान के साथ हंस दिया |



   मैं तो खैर आज भी चुप हूं, दोस्ती का वचन देकर, पर वह.....?



                      --  सुनील कुमार ‘’सजल’’

रविवार, 10 मई 2015

लघुव्यंग्य –वही होगा


लघुव्यंग्य –वही होगा

पति –पत्नी आपस में बात कर रहे थे | इसी बीच पत्नी बोली – ‘’ 
शर्मा जी स्वर्ग सिधार गए | अब बेचारी दीदी व उनके दो बच्चों का क्या हाल होगा |बच्चे अभी ब्याहे नहीं हैं ... कैसे चलेगा घर का गुजर –बसर |
‘’’’ कुछ नहीं ..पेंशन के साथ-साथ अनुकंपा नियुक्ति भी मिलेगी उन्हें.....वे अपना मन उनमें बहला लेंगी |’’ पति ने सपाट उत्तर दिया |
‘’लेकिन बेटी ब्याह जाने से और अकेली महसूस करेंगी ...मन कि बेटे का विवाह भी कर देंगी ..पर वे तो अपने में मस्त रहेंगे |फिर क्या होगा बेचारी का |’’पत्नी ने गंभीर होते हुए कहा |
‘’ नया कुछ नहीं होगा ... वही होगा जो हमारे घर तुम्हें बहू बनाकर लाने के बाद मेरी मां का हाल हो रहा है ....|
पति ने पत्नी की ओर से बढ़ायी जा प्रश्नों की श्रृंखला को तोड़ते हुए कहा |
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

लघुव्यंग्य –करूं या नहीं



लघुव्यंग्य –करूं या नहीं
गाँवव आसपास सूखा पड़ने से मजदूरों का पलायन जारी था|खेती- बाड़ी व घर के काम निपटाने के लिये मजदूरों  का अभाव बना हुआ था | काफी प्रयास के बाद घर के पिछवाड़े का कचरा साफ़ करवाने के लिए उन्हें एक मजदूर उपलब्ध हो पाया |वह जैसे  –तैसे तैयार हुआ और अगली सुबह से काम पर आने की बात कहकर चला गया |
तीन दिन तक इंतज़ार करने के बाद जब वह चौथे दिन उनके घर में उपस्थित हुआ | वे उसे फटकार लगाते हुए बोले –‘’ आज आये हो .. बहुत इन्तजार करवाया ... बड़े भाव बढ़ गए हैं तुम लोगों के इन दिनों ....|’’
मजदूर ने भी उसी अंदाज में जवाब देते हुए कहा –‘’ साब , जब आप कर्मचारी लोग दफ्तर में एक दिन के काम को निपटाने में सप्ताह भर लगाते हैं ...तो मैं मजदूर ठहरा ..कम से कम तीन दिन बाद चला आया ... कही काम शुरू करूं या नहीं ....|’’
वे खामोश...काम हरु करने का इशारा करके रह गए |
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

लघुकथा – कमाई


लघुकथा – कमाई
सोमवती अमावस्या का दिन | सेठ जी हाथ में थैली लिए बस स्टैंड की ओर जा रहे थे |
‘’ अरे सेठ जी कहांजा रहे हैं ...वह भी सुबह –सुबह |’’ मैं उन्हें देखते ही बोला | वे खड़े हो गये|
‘’नर्मदा करने अमरकंटक |’’
‘’ ऐसी कडकडातीसर्दी में क्यों प्राण दे रहें हैं |’’
क्या करें तो ...आज मार्केट भी सूना है ... धंधा – पानी सब ठंडा है ...सोचा आज पुण्य ही कमा आएं ...| फिर अन्य दिनों में धंधे की कमाई से फुर्सत कहां मिलती है ?’’
‘’ यानी सिर्फ कमाई की ही चिंता ... सेठ जी |’’ मैंने हंसते हुए कहा |
‘’ भई अपन ठहरे व्यापारी ... हर क्षेत्र में मुनाफ़ा ही देखते हैं ..फिर वह धर्म हो धंधा ...|’’
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

शनिवार, 9 मई 2015

लघुकथा – अभी तक



लघुकथा – अभी तक

एक पुलिस कर्मी ने पटाखे की दुकानसे पटाखा पैक कराया और बिना भुगतान किये चल दिया | उसके जाने के बाद विक्रेता बुरीं गालियाँ देते हुए बोला- ‘’ इन हरामखोरों के कारण धंधा भी सहीं ढंग से नहीं कर सकते |’’

साथ ही में खड़े साथी ने उससे कहा- ‘’आपने बिल भुगतान करने को क्यों नहीं कहा ?’’

‘’साला लायसेंस माँगने लगता तो कहाँ से लाकर दिखाता .... जो मैंने अभी तक बनवाया नहीं है |’’

बुधवार, 6 मई 2015

लघुकथा - धंधा

लघुकथा - धंधा
चमन भाई को अपने धंधे में अचानक काफी नुकसान उठाना पड़ा । धंधे में लगी पूँजी मटियामेट हो गयी । थोड़ा बहुत धन  जो पास में बचा था साहूकारों व दुकानदारों  कर्ज पटाने में  चला गया । चमन जी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें ? घर की माली हालत पर तनाव भरे आंसू बहाते उन्हें एक दिन जाने  सूझा कि यहां वहां से थोड़ा बहुत कर्ज लेकर अवैध शराब बनवाकर बेचना शुरू  कर दिया । इस पर प्रतिक्रिया करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने उनसे कहा - '' यार चमन भाई आप तो एक इज्जतदार आदमी है । अपनी इज्जत को दांव पर लगाते हुए यह क्या अवैध ठर्रा बेच रहे हैं । कम से कम धंधा तो ऐसा करते जिसमें इज्जत की भले ही एक रोटी मिलती । यह काम तो ... ?
'' क्या कहा ... ? अगर यह इज्जतदार लोगों का धंधा नहीं है तो आप जैसे इज्जतदार लोग रोजाना शाम को कल्लू के घर हलक में गिलास दो गिलास वही अवैध ठर्रा उड़ेलने क्यों जाते हैं ? कहिए ? 
 मोहन जी ... निरुत्तर... ।

मंगलवार, 5 मई 2015

लघुकथा - सजा

लघुकथा - सजा
वह करीब माह भर से भगवान  दरबार पर  जाता रहा और एक ही रोना रोता - ' भगवान मेरे ऊपर यह कैसा अन्याय उड़ेल रहे हो , तुम्ही देखो पहले पत्नी मानसिक विक्षिप्त हुई फिर आग लगा कर आत्महत्या  कर ली ,साल दो साल के दो छोटे बच्चे मां  बगैर होकर रह गए ,अब करूँ भी तो क्या करूं ,मेरा संकटतो हरो भगवान.....। ''
 एक दिन भगवन प्रकट हुए । बोले- ' वत्स ! तूने अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारी है । '
 ''यह क्या कह   रहें हैं  भगवन....। '
'' जो कह रहा हूँ ठीक कह रहा हूँ.. अगर तू पिछ्ला जीवन निकम्मेपन व कामचोरी से न   जीता तो तेरी पत्नी तेरे संग नमक-रोटी खाकर भी खुश रहती । वह तेरी बढ़ती कारगुजारी को नहीं देख सकी और मानसिक विक्षिप्ता का शिकार हुई... मगर तू न   सुधरा । तेरी अति उसे सहन न हुई तो उसे भूख - प्यास  बिलखते बच्चों  देखना मुमकिन न रहा और फिर ...... तुझे मालूम है, इसलिए तुझे ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि प्रायश्चित कर सके.....। '' इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए । वह देखता रह गया ।

लघुव्यंग्य -मेरा क्या

लघुव्यंग्य -मेरा क्या
''जिसे   तुम प्यार करती थीं , वह तो तुम्हें छोड़कर चला गया और तुम कुछ न कर सकी । '' सखी ने उससे कहा ।
'' मैंने जानबूझकर उसके खिलाफ कुछ भी नहीं किया । '' उसका मासूम उत्तर था ।
''क्यों?'' सखी ने प्रश्न किया ।
'' उसके बीबी-बच्चे थे...... आखिर उन्हें कौन अपनाता ।' कहा ।
'मगर तुम तो.........। ' सखी ने कहा तो उसकी बात काटते हुए वह स्पष्ट शब्दों में बोली -''मेरा क्या............ मैं तो कुंवारी हूँ । मुझे कोई न कोई अपना लेगा ...
                                 सुनील कुमार ''सजल''

सोमवार, 4 मई 2015

लघुव्यंग्य -मुखौटा

लघुव्यंग्य -मुखौटा
'' तुम जिस संत की पूजा करते थे वह तो पुलिस हिरासत में पहुंच गया । वह भी अपनी शिष्या के साथ बलात्कार  आरोप में । ''
''जो हुआ अच्छा हुआ , मैं उसकी शक्ल  नहीं ,उसकी शिक्षा  की पूजा करता हूँ ....जिसने मेरे  जीवन को लायक बना दिया । एक बात और सुनो.... आदमी के चेहरे पर कई मुखौटे   हैं , मगर शिक्षा के नहीं .... ।

रविवार, 3 मई 2015

लघुकथा -मुआवजा

                                                              लघुकथा -मुआवजा
   पडोसी गरीब शेखू संतान पक्ष कोलेकर काफी  दुखी है । पिछले ही माह उसका इकलौता बेटा बस दुर्घटना में मारा गया । अब बची है इकलौती बेटी शांति ,जो ससुराल में 'दहेज़' के लिए प्रताड़ित की जा रही है ।
    शेखू को सरकार की ओर  से मृत बेटे का मुआवजा मिलने वाला है मगर हो रही देरी से वह परेशान हो उठा है । मुआवजा पाने की लालसा में शेखू की बेचैनी देखकर क्रोधित होती पत्नी ने कहा -'' तुम भी कितने निर्दयी हो.…इधर बेटा मर गया ,उसका ज़रा भी गम नहीं मुआवजा राशि घोषित होते ही दफ्तर के चक्कर काटने लगे  । कैसे बाप हो तुम  ? बेटे से ज्यादा पैसों  प्यार… । ''
  '' सुमिता , तुम मुझे गलत समझ रही हो । '' कहते हुए उसकी आँखों से आंसू छलक उठे ,''मैं ससुराल में सताई जा रही बिटिया की जिंदगीं बचाने के लिए परेशान हूँ ताकि इसी मुआवजे से उसकी दहेज़ की पूर्ति  कर सकूँ । बेटे को तो बस ने दुनिया  दूर कर दिया। ........ और अब ससुराल वाले बिटिया को भी। .... । '' कहते हुए वह फफककर रो पड़ा ।
    पति का मंतव्य सुनते ही पत्नी सन्न भाव से उसकी ओर देखती रह गई । 
  
 सुनील कुमार '' 'सजल'