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शनिवार, 23 मई 2015

व्यंग्य- नाक कटने का सवाल


व्यंग्य- नाक कटने का सवाल


उस दिन अखबार में समाचार छपा| दिखने में रोचक लग रहा था | इतनी रोचकता समाचार की विषय वस्तु में नहीं थी | जितना उसे रोचक बनाने का प्रयास किया गया था | यूँ तो आए दिन समाचार छपते हैं वे रोचक होते भी हैं , नहीं भी | वह समाचार मुख्य पृष्ठ का हिस्सा था |उसे राष्ट्रीय समाचार जैसा स्थान प्राप्त था रंगीन ब्लाक में आकर्षक | आखिर समाचार क्या था? ‘’ पति ने अपनी पत्नी की नाक काट दी | ‘’
घटना सामान्य थी| पर अखबार नवीसों का प्रयास रहा , कम से कम वह राष्ट्रीय लगे | रांम – रावण युग में घटी सुर्पणखा की नाक की तरह यह घटना भी चर्चित हो |
पति ने नाक ही तो काटी थी | गर्दन तो नहीं | आज के समय ऐसी घटना आम बात है | पति ने सोचा होगा, दूसरे अंग काटने इ बेहतर है, नाक काट देना | नाक काटने में ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ी होगी | नाक पर चाकू रखकर दबा दिया होगा | बस कट गयी नाक |
यूँ तो युगों से महिलाओं की ही नाक को काटा जाता रहा है | वे हमेशा से अपनी नाक बचाने के प्रयास में रही हैं |
पति ने नाक काटी थी | तो क्या हुआ ? वह उसका परमेश्वर है | धर्मज्ञानी कहते हैं , परमेश्वर का काम अपनों को हसना है भी है ,रुलाना भी | परमेश्वर स्वंम रूठ गए तो सताते भी है , सजा भी देते हैं | पति भी किसी बात पर रूठ गया होगा |
क्या पत्नी ने स्वयं को बेइज्जत महसूस किया होगा ? शायद नहीं | लक्ष्मण के द्वारा सूपर्णखा की नाक काटे जाने की तरह नहीं | जो रावण की तरह पड़ोसी रिश्तेदार भाई बंधुओं का खून खौल उठा हो | पत्नी सचमुच परमेश्वर की व्रता थी | उसने थाणे में रपट दर्ज कराने से मना किया था |
नामालूम अखबार वालों को क्या नया दिखा जो इस घटना को मुख्य पृष्ठ देदिया | दूसरा – तीसरा या चौथा पृष्ठ भी दिया जा सकता था | क्या वे भी पीट पत्रकारिता इ ग्रसित थे? या ख़बरों का आभाव था मुख्य पृष्ठ के लिए | जैसा की कुछ तथाकथित अखबार नाली में कीड़े , चौराहे की गन्दगी , या थाने के सामने चोरी या बलात्कार को राष्ट्रीय खबर की तरह छाप  देते हैं |
शायद यह सोचा हो उनहोंने | ह्त्या बलात्कार लूटपाट जैसी खबरों को आम आदमी पृष्ठों पर देखकर झट इ पन्ने पलट देता है | इस खबर को देखकर कुछ देर ठहरे |
पर वे यह नहीं सोच पाए कि यहाँ राष्ट्रीय मर्यादा की नाक रोजाना कट रही है | मसलन , सुरक्षा प्रदान करने वाली संसथाएँ भ्रष्टाचार का नंगा खेल खेल रही हैं |थाने  में बलात्कार , लूटमार मची है | गाँव में अबला को डायन बनाया जा रहा है | नंगा घुमाया जाता है | राष्ट्रीय सुरक्षा की गुप्त जानकारी चाँद नोटों के बदले बिक रही हैं | राष्ट्र के कर्णधार स्वयं कबूतरबाजी , देहव्यापार में लीं हैं | इन घटनाओं से तो महत्वपूर्ण नहीं थी उसकी पत्नी की नाक |
कितना व आसान वाक्य है नाक कतना | कई मामलों में साफ़ सुथरी सुन्दर आकार वाली नाक बिना जख्म व बिना लहू निकले कट जाती है | काश देश के साथ ऐसा ही होता |
मैं कुछ दिनों से एक चिकित्सालय का विज्ञापन देख रहा हूँ |’’ कटी नाक सस्ता इलाज |’’ फिर वाही ख़ुशी पाइये |’’ शुक्र है डाक्टरों का जिन्हें कम से कम लोगो की नाक की चिंता है \ वह भी सस्ते इलाज में |
  नाक का एक मसला यह भी है किकुछ लोग नाक होते हुए भी बिना नाक वाले होते हैं | जिनके लिए मान-मर्यादा , सम्मान खीसे में छेद जैसा होता है |वे अक्सर कहते हैं| आपकी तरह हमारी भी नाक है | आपको दिखाती या समझ में नहीं आती तो हम क्या करें | हो सकता है आपको मोतियाबिंद हो गया हो | या कुछ और खोट हो आँख में |’
पिछले दिनों पहले शहर में एक बाइकर्सगिरोह सक्रिय हुआ | लोगो की नाक पर हमला करता था | बेवकूफ पकड़ा भी गया | सचमुच बेवकूफ था गिरोह | ऐसे हमले से क्या मिला उसे ? पुलिस की लात ,जूते ,घूंसे व जेल |
अरे भाई काटना था तो जेब काटता, चैन स्नेचिंग करता | फायदे में रहता | पकड़ा भी जाता तो थाने  में आधा माल बांटकर फिर से धंधे में लग जाता | थाने  में मामला सेट हो जाए तो हर अपराधिक धंधे में छोट मिल जाती हैं |
बाइकर्स गिरोह को यह भी सोचना था कटी नाक का इलाज कराने वालों की भीड़ डाक्टर के द्वार पर नेताओं की रैली उपस्थित भीड़ की तरह बढी है | एक को बुलाते हैं चार पीड़ित आ खड़े होते हैं नाक बचाने की चिंता में |
तो क्या करें नाक का ? कटाने दें या कटाने से बचाएं ? आधुनिक जीवन शैली बचने दें तब न ? यहाँ तो हर पल कटाने का खतरा है | कभी औलाद से, परिजनों से कभी खुद की करनी-धरणी से | नाक को हाथ से ढककर भी नहीं रखा जज सकता | लोगों का शक गहराता है | अच्छा यही है कि जेब में नकली नाक लेकर चले | ताकि नाक कटती रहें तो हम पूरी बेशर्मी से उस पर नकली नाक दहकते रहें | आखिर नक्काल भी तो इज्जत पर चार् चाँद लगाते हैं | क्या कहते हैं?
               सुनील कुमार ‘’सजल’’

मंगलवार, 19 मई 2015

व्यंग्य –ये गांधी को रास्ता दिखाने वाले


व्यंग्य –ये गांधी को रास्ता दिखाने वाले



महापुरुषों की भांति रास्ता दिखाने वाले लोग कहाँ रहे ,अब तो रास्ते में आने वाले जरुर मिल जाते हैं, गली , चौराहे, गांव , शहक्र कहीं भी |
पहले वक्त अलग था , लोग भटके जनों को रास्ता दिखाने में धर्म कर्म भी समझते थे | लेकिन वक्त बदला उल्टी रीत चली | राह दिखाना महज धंधा बनाकर रह गया | जो राह दिखाते हैं वे भी विश्वसनीय नहीं रहे | असली चहरे पर मुखौटा लड़ा है | धंधे का चन्दा उन्हें न  मिले तो वे राह पर हाथ फैलाकर या रोड़े बनाकर खड़े हो जाते हैं | देखते हैं साला कैसे आगे बढ़ता हैं | टांग खीचों, इत्ते के बाद भी न माने तो हाथ पाँव तोड़ दो और ज्यादा साहस दिखाए तो स्ट्रेचर पर लाड कर अस्पताल पहुचाओं और वहां डाक्टर को घूस देकर उलटा –सीधा इलाज करवाकर लकवा ग्रस्त रोगी बनवा दो | ताकि जी सके,न मर सके | बस , टुकुर –टुकुर देखकर अपनी जिन्दगी की उलटी गिनती गिनता रहे |
गांधी जी थे, वही महात्मा गांधी जी ,  जो भारतीय जनता को स्वतंत्रता पूर्वक सुखी जीवन जीने की राह दिखाते थे|लोग स्वतंत्रता पूर्वक जी सके , इसलिए उन्होंने संघर्ष किया अंग्रेजों से | पर वे नहीं रहे , अब तो वे स्टेचू के रूप में खुद चौराहे पर खड़े हैं |  वे कूद दिग्भ्रमित हैं , किधर जाएँ , कौन –सी दिशा में जाएँ, कौन –सी दिशा ठीक रहेगी, कौन-सी नहीं, स्टेचू के स्वरूप में सोच नहीं पा रहे हैं | उनके नाम से अपना धंधा चमकाने वाले , राजनीति का चरखा चलाने वाले स्वतन्त्र भारत के राजनीतिज्ञ उन्हें दिशा ज्ञान देते हैं | कभी कहते हैं –‘’ इधर मुंह करके खड़े होओ  बापू , ये रास्ता हमारी पार्टी के दफ्तर की ओर जाता है , कभी खाते हैं उधर मुंह करके खड़े होओ  बापू वो रास्ता दारू फैक्टरी और कसईखानों के तरफ जाता है | आपके जमाने से भी बेहतरीन स्वादिष्ट दारू पकती है , हाइब्रिड जानवरों का स्वादिष्ट मांस भी पैक होता है उसी तरफ | दोनों का स्वाद मिलकर जिन्दगी जीने का स्वाद ही बदल देता है |
कुछ राजनीतिज्ञ  उन्हें जबरन तीसरी दिशा की ओर मोड़ कर कहते हैं-‘’ बापू आप तो अहिंसा का नारा लगाते-लगाते मर गए क्योंकि आपके पास हिंसा के आधुनिक किस्म के हथियार नहीं थे , हम जो आपको रास्ता दिखा रहे हैं वो माफिया तस्करों के पनाहगाह की ओर ले जाता है...सस्ते में देस्शी-विदेशी अस्त्र-शास्त्र उपलब्ध करा देते हैं ... आपको जब भी जरुरत पड़े आर्डर देकर पुख्तामाल प्राप्त कर सकते हैं |
चौथे किस्म के राजनीतिज्ञ बापू की धोती खीचते हुए अपने दिशा – ज्ञान का ज्ञान बापू को देते हुए कहते-‘’ बापू इन बहकाने वालों की बातों में मत आओ , हम जो रास्ता दिखाते हैं उधर जाओ | उस तरफ देश – विदेश से मानव तस्करी के माध्यम से लायी गयी सुंदर-सुंदर लड़कियों के अड्डे हैं | जो सीटी बजाकर यौवन की नुमाइश कर बूढ़े बदन में भी जवानी की तरंग दौड़ा देती हैं \ इसलिए फालतू लोगों के बहकावे न आकर जीवन आनंद का जो सार है उसी का मजा लूटो | यही रास्ता सबसे बेहतरीन रास्ता है |
  अब बापू का करें ? किधर जाएँ ? किसकी सुने किसकी नहीं सुने ? जिन लोगो के बताये मार्ग पर नहीं जाने की सोचते हैं | वे दुखी होकर निराहार उपवास पर बैठ जाते हैं ...| बापू कहते हैं-‘’ भैया हमें चौराहे पर ही टिके रहने दो | तो उनको दिशा ज्ञान देने वाले अड़ जाते हैं | आप हमारे बताये रास्ते की तरफ मुख करो | गांधीजी परेशां हैं .. इस दिशा में अब इतनी भी स्वतंत्रता नहीं रही क्योंकि हम जिधर जाएँ न जाएँ , हमारी मर्जी | फिर काहे की स्वतंत्रता इन्हें सौपी थी | अंतत: उन्होंने एक उपाय निकाल लिया वे बताए जा रहे रास्ते को नहीं देखेंगे बल्कि जमीन की तरफ देखेंगे | तब से हमारे शहर में चौराहे पर खड़े होकर धरती की तरफ टाक रहे हैं | अब कोई राजनीतिज्ञ उन्हें राह दिखाने नहीं जाता औए न ही हालचाल पूछता | बेचारे अकेले ही खड़े हैं और न जाने कब तक खड़े रहेंगे ? उस दिन हम नगर के एक राजनैतिक पार्टी के के सामने गुजर रहे थे | तभी देखा दफ्तर में घमासान मचा हुआ था | सब एक दूसरे की दाई माई टांग खिचाई कर रहे थे | अंदर की उठापटक ने हमें उस ओर आकर्षित किया | हम दफ्तर के द्वार तक पहुंचे | द्वार पर दुबके खड़े एक नेताजी अंदर के नज़ारे से भयभीत थे, ग़मगीन भी | सच कहें संसद या विधानसभाओं में प्रश्नकाल के दौरान जो सता पक्ष व विपक्षियों के मध्य जो मार –फुतैवल मचाती है, वही सीन यहाँ दृश्यमान हो रहा था | बूढ़े , जवान , महिला पुरुष ,सब एक दूसरे पर हाथापाई , झोंटा-खिचाई करते हुए चढ़े बैठ रहे थे | इज्जत कहें या मर्यादा , उसकी तो ऐसी- तैसी ही रही थी | सब बेफिक्री के साथ मस्त थे | हमने दुबके खड़े नेता जी को इशारे से दफ्तर के लान की ओर चलने को कहा , वे हमारे साथ इसलिए भी आ गए थे क्योंकि पड़ोसी हैं..| लान पर बिछी सीमेंट की कुरसी पर बैठते हुए पूछा-‘’ अंदर काहे का धूम धडाका मचा है , कहीं आगामी सत्र में सत्ता पक्ष को मजा चखाने का अभ्यास का क्रम तो नहीं है ताकि नौसिखिए विधायक सांसद अभ्यास से परिपूर्ण रहें | ‘’
‘’ आप भी बेवकूफों जैसी बातें करते हैं ... राजनीतिग्य इतना तो पहले से ही जानते हैं |’ उनहोंने हमारे प्रश्न पर चोट की |
‘’ अरे भई , हमारा कहने का मतलब घमासान मचा है तो उसके पीछे कुछ न कुछ कारण तो होगा |’’ हमने कहा |
‘’ बिना कारण के यह सब होता है क्या ? बात  यह है किहमारे पार्टी के चार दिग्गजों ने पार्टी के उद्देश्यों के साथ गद्दारी की है | इसलिए उन्हें रास्ता दिखाने का क्रम चल रहा है |’’
रास्ता दिखाने का सही काम महापुरुषों ने किया और रास्ता दिखाते-दिखाते वे खुद रास्ते पर आ गए , तब भी देश रास्ते पर नहीं आया | औए तुम एक जात के लोग अपनी ही जात के लोगों को रास्ता दिखाने का बीड़ा उठाये बैठे हो ... जबकि सबके एक से सिध्दांत हैं और सब की रगों में एक ही प्रकार की काली करतूतों का रक्त बह रहा है |’’ हमने कुछ कड़वा कहा तो वे खीझ गए –‘’ देखो, जले पर नमक मत छिड़को यार... जानते नहीं हो पार्टी को कितना बड़ा झटका लगा है |’’ ‘’
‘’ सुनामी की हलचल जैसा |’’
‘’ मजाक मत करो .. पड़ोसी के नाते हम तुम्हें कुछ नहीं कह पा रहे हैं |’’
‘’ तो बताओ न भैया .. वोटर और दोस्त के नाते क्या हमें इत्ती सी बात जानने का हक़ नहीं है |’’
‘’ हक़ है... गद्दारों के बारे में जानने का हक़ है ... बात ऐसी है कि इन सालों ने प्रचार सभाओं में पार्टी की नीति का ही टांका उधेड़ कर हमारे विपक्षियों का गुणगान किया है और जब पार्टी के लोगों ने उनकी करतूतों पर उंगली उठाया तो फुल रंगदारी करने में उतर आये | इसलिए इन्हें पार्टी से रास्ता दिखाने का प्रस्ताव है |’’ उन्होंने बताया |
‘’ यानी पार्टी से खदेड़ने का |’’ हमने कहा |
‘’ और नहीं तो क्या , हमारी पार्टी को कोई इंसान बनाने वाला ठेकेदारी केंद्र समझ रखा है |’’
‘’ मगर गांधी जी जैसे महापुरुष देश को रास्ता दिखाने का मतलब बहके देश को सुधारना बताते थे | और आप लोग |’’
‘’ देखो यार , गांधी जी लोग दूसरों को सुधारने के फेर में खुद धक्का मुक्की खाते हुए चलते बने ,,और अपन वो हैं जो नापसंद हो उसे धक्का मारकर चलता करते हैं |’’
‘’ यानी, यह है आपका रास्ता दिखाने का अर्थ..|’’
वे टेंशन में थे हमारी बातें उन्हें चुभ-सी गयी | भड़क कर बोले- ‘’ देखो, जनाब तुम्हारा रास्ता वो है .... चुपचाप चले जाओ ....|’’  हम उनके समझाइश को गहरे अर्थ में लेकर निकल पड़े यह जानते हुए किनेता चाहे जितना शालीन हो कब मर्यादा खो दे पता नहीं |
    सुनील कुमार ‘’सजल’’

लघुकथा – फटी कथरी


लघुकथा – फटी कथरी


कल रात गांव में ठाकुर रामदीन के बंधुआ नौकर समारू की इकलौती बिटिया कल्लो को पडोसी कस्बे के कुछ बदमाश खेत से  उठाकर ले गए
रात भर मां –बाप की आंसू बहाती आँखे व बेचैनी  के बीच जब वह सुबह तक नहीं लौटी तो क्या करें कैसा करें ? की मन: स्थिति से जूझता ठाकुर रामदीन के घर में सर क्झुकाए आंसू बहाता समारू चिंता में कुछ सोच भी नहीं पा रहा था |
ठाकुर रामदीन कह रहे थे –‘’ देख समारू ,मैं पहले ही कह रहा था न किकल्लो को मेरे घर में ही काम में लगा दे पर साला माना नहीं और भेजता रहा दूसरों के घर काम में | हो गई लोगों की नीयत खराब | आज वो अगर मेरे घर होती तो यह दुर्दशा न होती उसकी |
बेचारा समारू क्या कहता | उसे तो ठाकुर साब की नीयत में भी खत नजर आ रहा था | अपने यहाँ काम करने वाली न जाने कितनी बेबस व मजबूर लड़कियों की अस्मत लूट चुके थे |
ठाकुर साब के खोजबीन व सहयोग के आश्वासन के बाद समारू घर लौट आया | इधर देखा तो पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था | जैसे तैसे ठाकुर साब के दी आश्वासन को सुनकर ढाढस बंधा था पर अंदर का उफान लेता सैलाब कहाँ खामोश रहता |वह उसे ताने कसते कह रही थी – ‘’ काश ! मेरी माने होते तो अपनी बिटिया लुटेरों के हाथ लुटाने से बाख जाती | अगर नियत ख़राब होने पर ठाकुर जी उसकी अस्मत से खेल भी लेते तो कौन जानता | इज्जत तो बनी रहती हम गरीबों की और बिटिया के हाथों रकम....| उन बदमाशों का क्या है | ओढ़ बिछाकर कल फेंक जाएंगे अपने द्वार पर फटी कथरी की तरह | कोई काम की नहीं रह जाएगी , न ब्याहने की न मुंह दिखाने की |

सोमवार, 18 मई 2015

व्यंग्य- हम तो कहते हैं


व्यंग्य- हम तो कहते हैं


यारो जो आए जी में कह लो |कहने में कैसा डर| अपना मुंह है कुछ भी बक लें |लोकतंत्र में रहते हैं |अपना देश वह लोकतात्रिक देश नहीं है | जहां एक बार कहने के लिए सौ बार सोचना पड़ता है | यहाँ तो इतनी छूट  है कि सौ बार बोलकर एक बार सोचते हैं |जो जी में आया कह दिया | हर कोई मानहानि का दावा थोडी न ठोंकता है | सामने वाले को मालूम है |आज अपन दावा ठोंकेंगे |कल वह भी अपने ऊपर दावा ठोंक सकता है | अपना मुंह भी बेलगाम है | आपने वह गीत सूना होगा | ‘’ कुछ तो लोग कहेंगे | लोगो का काम है कहना |’’ बस यही सोचकर बेपरवाह से हम कुछ भी करते रहते | नतीजा हम पर छेडछाड सीटी बाजी जैसे आरोप लगे | अखबार तक में नाम छपा | 
  हम तो कहते हैं साब | बिना कुछ कहे या करे आप महानता हासिल नहीं कर सकते | हमारे बुजुर्ग बहुत कुछ कहा करते थे |जो वे खुद नहीं करते थे वह भी |और उनमें से कुछ महान पुरुष बन गए |
 कुछ भी कहते रहने का फ़ायदा यह होता है की हम कहने के आदी हो जाते हैं | जैसे देश के राजनीतिज्ञ बकवास बातों को यूँ कह देते हैं जैसे कहने की बात हो |
राजनीति का फंदा है गूंगा या मूक बनाकर राजनीति न करो | वरना देखकर कुत्ते भी न भौकेंगे | दुत्कारना भी आना चाहिए और पुचकारना भी |
पिछले दिनों शहर के एक नेता ने महिला नेत्री पर कुछ अनर्गल टिप्पणीकी | हो हल्ला मचाया महिला संगठनों ने | नेताजी के खिलाफ नारेबाजी हुई | पर वे निश्चिन्त थे | पूछने पर बोले –‘’जो कहना था , कह दिया |’’
 साहब फायदे के लिए कुछ कहना पड़ता है | दरअसल , कुछ दिनों से मीडिया उन्हें महत्त्व नहीं दे रहा था | वे उपेक्षित से थे | जनता में पहचान गम होती जा रही थी | इसलिए उन्होंने सोचा कुछ कहकर लाइट में आया जाए और कह दिया | अब चार दिनों से वे लगातार छप रहे हैं |
 अभी कुछ दिन पूर्व आपने न्यूज में सुना होगा | एक जज ने सुनवाई करते हुए कह दिया | महिलाओं को पति से पीटने में क्या बुराई है | कहने की बात थी , कह दी | इसमें महिलाओं को बुरा लगा तो वे क्या करें |
हो सकता है उनके पास पति प्रताड़ित पत्नियों के मामले आते रहे हों या पत्नी द्वारा दर्ज फर्जी मामले भी रहे हों | मामला कुछ भी रहा हो | लगता है जज साहब ऐसे मामलों से ऊब चुके थे | सो , मन के अंदर उठी बात कह दी |
भई पिट लो | क्या बुरा है | पति ही तो है पीटने वाला | जिसे तुम परमेश्वर कहती हो | हरितालिका व करवा चौथ में जिसे देवता मानकर देखती हो | जब तक तलाक या सम्बन्ध विच्छेद नहीं होता उसके नाम का मांग में सिन्दूर भरती हो | एक तरफ लम्बी उम्र की चाहत पति की | दूसरी तरफ न्यायालय में सजा दिलाने का उपक्रम | शायद यही सोचकर जज साहब ने सलाह दी हो महिलाओं को |
इधर, मीडिया को क्या है ? मेटर चाहिए | वह तो कहने वाले का मुंह पकड़ता है | किसी ने चूं किया उधर फूं छाप दिया |
हमारी सलाह है किआप भी मुंह में आए कही | बात मन में दबाने से शारीरिक विकृति उत्पन्न होती है , यानी आप दब्बू बन सकते हैं या टेंशन से घिर सकते हैं |
 अब तो हमारी सलाह मानेंगे न | सलाह देना हमारिऊ आदत है |
      सुनील कुमार ‘’सजल’’ 

व्यंग्य-आन्दोलन होते रहें


व्यंग्य-आन्दोलन  होते रहें

वह आन्दोलन के खिलाफ है |अक्सर आन्दोलनों की आलोचना करता है |देश की मीडिया में जब भी पढ़ता सुनता है , फलां जगह फलां मुद्दे पर आन्दोलन किया गया , वह परेशान हो उठाता है | कहता -‘’देश जाने कहाँ जा रहा है| ऐसे में वह ख़ाक तरक्की करेगा |’’
उसकी चिंता को देखकर मैनर समझाया –‘’ तुम व्यर्थ में आन्दोलनों के खिलाफ हो | आखिर बुराई क्या रखना आन्दोलनों से |’’
वह बोला –‘’ कैसी बातें करते हो | जानते हो आन्दोलानिं से कितना नुकसान है | राष्ट्रीय समय इ लेकर राष्ट्रिय संपत्ति तक | ‘’
‘’ अगर तुम ऐसी चिंता करोगे तो सिर्फ तुम अंदर ही अंदर घुटते रहोगे | जानते आंदोलनों के कितने फायदे हैं |’’ मैंने कहा |
‘’ क्या खाक फ़ायदा होगा |’’ वह मुंह बना कर बोला  |
‘’ कैसे नहीं? आन्दोलन उसी देश में ज्यादा होते हैं, जहां के लोग जागरूक होते हैं , जिन्हें अपने हक़ का ज्ञान होता है | जब देशी- विदेशी मीडिया के माध्यम से विदेशी हमारे देश की स्थिति देखकर सोचते होंगे किपिछड़ा व विकासशील देश इतनी जल्दी शिक्षित हो गया किहर हाथ में हक़ के प्रति जागरूकता की मशाल है| दिमाग लगा मेरे भाई आन्दोलन हमारी प्रगति का सूचक है |’’ मैंने विस्तार से समझाया |
‘’ क्या ख़ाक शिक्षित हुआ ? साक्षरता कार्यक्रम की असलियत से पूरा देश वाकिफ है | सच कहूं , देखो आप राजनेताओं के घेरे में रहते हो , इसलिए आपकी सोच भी पूरी राजनैतिक है |’ उसने उलटे मुझे आड़े हाथों लिया |
आंदोलन क्या सिर्फ नेता लोग ही करते हैं?’’

 ‘’ घाघ नेता सिर्फ जनता को बरगलाते हैं | आन्दोलनों की कमान छुटभैये संभालते हैं | चीखते हैं, चिल्लाते हैं , उपद्रव व नारे रचते हैं |’
‘’यह मत भूलो | देश के बेकार लोग इसी में एडजस्ट होते हैं | टाइम पास करते हैं |अत:देश में आन्दोलन मनोरंजन का साधन भी है |’’
वे मेरी बातों के प्रति बोले –‘’ आपका कथ्य आपको मुबारक |’’ और खिसक लिए |
यूँ तो इन दिनों देश में तरक्की ही तरक्की दिख रही है | जहां तरक्की है वहां आन्दोलन है | आन्दोलन स्वार्थ का एक रूप है  |
नगर पालिका की लापरवाही से आप भी अवगत हैं | कई बार साफ़-सफाई को लेकर जनता को उसके खिलाफ आन्दोलन करना पड़ता है | कहने का मतलब छोटी-छोटी बातों के लिए आंदोलनों की मशाल उठायी जा अकती है | यह एक तरह की छूट है | यही कारन है किलोकतांत्रिक व्यक्ति आन्दोलन करने व टांग खीचने में व्यस्त रहता है | उसके पास वक्त की कमीं होती है | पिछले दिनों से हमारे नगर में पत्नी पीड़ितों का आन्दोलन जारी है | तीन शेड एरिया में पंडाल टेल ये पीड़ित नारेबाजी करते आ रहे हैं |पत्नी पीड़ित संघ जिंदाबाद | पत्नी अत्याचार मुर्दाबाद |
इन आन्दोलनों से पीड़ित पतियों को लाभ ही लाभ है कि समय पर घर जाएँ न जाएँ | पत्नी देर से आने पर सवाल नहीं पूछती | उसे मालूम है किमुल्ला की दौड़ कहाँ तक है |
पति भी यह सोचकर आन्दोलन से जुदा रहता है | कम से कम घर की कलह से राहत है , उतने दिन ,जितने दिन आन्दोलन चालू हो |
                           सुनील कुमार ‘’सजल’’

व्यंग्य –संकल्पों के सनकी


व्यंग्य –संकल्पों के सनकी
इन दिनों हमारा शहर अनोखे दौर में शामिल है | जहां देखो वहीँ आयोजन हो रहे है |आपका सवाल हो सकता है कि आयोजन काहे के ? अजी! आयोजन हो रहे हैं, संकल्प लेने के | किस्म- किस्म के लोग किस्म –किस्म के संकल्प ले रहे है | शहर में लिए जा रहे संकल्पों को देखा और लिखा जाए तो संकल्पों के संग्रह की एक कृति तैयार हो सकती है |
पिछले दिनों एक राजनैतिक दल के नेता ने हमसे कह डाला किअबकी चुनाव में शहर को ‘संकल्पधानी’ नाम दिलाना हमारा असली मुद्दा होगा | हमारे शहर के लोगो पर संकल्प लेने की सनक सवार है | अब लोग गुण व धर्म के विपरीत किस तरह के संकल्प ले रहे हैं ,आप भी देखें | बेटी बचाने का संकल्प, नशा त्यागने का संकल्प , ईमानदारी अपनाने का संकल्प ,जनहित में कार्य करने का संकल्प , बिजली न चुराने का संकल्प ,घूसखोरी व कमीशनखोरी जड़ से मिटाने का संकल्प ,सफाई करने का संकल्प और भी न जाने कितने व कैसे कैसे संकल्प | परसों ही एक ने हमसे कहा ,-‘’ अपन ने धमाकेदार संकल्प लिया है |’’
‘’ क्या व कैसा?’’
‘’बेटी बचाने का संकल्प |’’
‘’तीन बार कन्या भ्रूण का गर्भपात कराने के बाद अचानक आपका मन इस संकल्प की ओर .. कहीं ऐसा तो नहीं किभ्रूण ह्त्या में पाप वा श्राप का आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हो गया हो ?’’
‘’नहीं.. !ऐसी बात पर अपना विशवास नहीं है |’’ ‘’ वे हमारे प्रश्नों का एक संक्षिप्त –सा उत्तर देकर चले गए | पर आज ही पता चला है  कि उनको पिछले दिनों पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है |
  इसी तरह चुनाव देखकर नेताओं ने ईमानदारी अपनाने का असंकल्प वाला मुखौटा लगा लिया है | हमने भी अच्छी बातों को अपनाने का संकल्प लेने की सोची | संकल्प लेने के पीछे कारण यह था किहमारी पत्नी की नजर में हमारी कुछ आदतें ठीक नहीं थी |यूँ तो उन आदतों पर न तो पड़ोसनों ने कभी अंगुली उठाई और न हमारे पड़ोसी दोस्तों ने, पर पत्नी की नजर में अगर वे आदतें बुरी थी तो बुरी थी |
हममें बुराई यह थी किहम रंगीन व पावर्लेंस चश्में से ख़ूबसूरत महिलाओं को ताकते रहते थे, जो हमारे घर के ठीक सामने रहती हैं | यह बात पत्नी की खुफिया नज़रों को नागवार गुजराती थी | दूसरी बुराई हममें यह रही है किहम चूनायुक्त तंबाखू – सुपारी खाने के आदी थे | पत्नी को आपत्ति इसा बात पर थी कितम्बाखू खाने से कैंसर होता है या बार –बार पिच्च –पिच्च हम थूकते रहते थे | आपत्ति थी ,उन लंगोटिया मुखौटेबाज मित्रों को घर में मुफ्त में सुपारी वा तम्बाखू खिलाने में | वेजेब का हर्र लगे न फिटकरी ..की तर्ज पर हमारे घर सुबह – शाम व रात्री में भोजन उपरांत तम्बाकू फांकने आ जाते थे | पत्नी का साफ़ कहना था या तो अपना नशा त्यागो या फिर मुफ्त तम्बाकूखोरों से कट्टीकर लो |
हमें तीसरी बुराई यह थी किसरकारी पद पर रहते हुए हमें कमीशन खोरी व घूसखोरी की आदत –सी पद गयी थी | जिसे त्यागने का मन बनाया तो पत्नी ने फटकारा ,’’क्या तुम महाराणा प्रताप बनकर हम सबको इस महंगाई में घास भूसे की रोटी खिलाना हो |’’
पत्नी की इच्छानुकूल हमने पहली दो बुराईयों के विरुध्द संकल्प लिया | कहते हैं, सब संकल्प होली के दिन टूट जाते हैं, इस बार न टूटे , इसलिए हमने पत्नी के समक्ष लिखित रूप में दिया कि एक तो किसी ख़ूबसूरत युवती को आँख पर चश्मा चढ़ाकर नहीं देखेंगे | ( हलांकि वह जानती है , हम दूर दृष्टि पर अंधे हैं), दूसरा यह कि हम तम्बाखू नहीं खायेंगे | तीसरे के बारे में हुए संवाद को आप जानते हैं |
यह देख – सुनकर पत्नी खूह हुई | उसकी ख़ुशी हमारे संकल्पों से मूल्यवान ठी | एक दिन हमने पत्नी के सामने बहाना बनाते हुए कहा,’’ देखो! चश्मा बार- बार उतारकर रखने से हमारी आँखों में जलन व सर में दर्द होने लगा है |
’’ पानीदार लेंस का चश्मा बनवा लो|’’पत्नी ने सुझाव दिया
‘’ परेशानी तो धुप से है, न ! रंगीन चश्मा तो पहनना पडेगा ‘’| रोज की हमारी शिकायतों से पत्नी का स्त्रीत्व पिघल गया | बोली ,’’ ठीक है  ! पहनी रखा करो चश्मा , पर कसम खाओ कि पराई स्त्रियों को नहीं घूरोगे |’’ हमने भी हां में जवाब दे दिया |
इस तरह आम लोगों की तरह हम भी संकल्प्धारी लोगों में शामिल हो गए | इधर सुनाने में आया है किसंकल्प्धारी लोग एक क्लब का गठन करने जा रहे हैं,-‘’ संकल्प्धारक क्लब | इनके सदस्य वे ही होंगे , जो संकल्प लेने के नशेडी हों |ख़ुशी इस बात की है किलोगों की इच्छा है कि किसी संस्था की तरह क्लब का नाम भी गिनिजबुक में शामिल हो | रिकार्ड तैयार किया जा रहा है किसंस्था के प्रत्येक सदस्य ने कितने दहाई , सैकड़ा या हजार प्रकार के संकल्प लिए ?
 क्या आप भी चाहेंगे किइसमें आपका नाम भी दर्ज हो ? घबराइये नहीं | सिर्फ संकल्प लीजिए और नाम दर्ज कराइए | इस क्लब के संविधान में संकल्प पालन करने की अनिवार्यता नहीं है |
                    सुनील कुमार ‘’सजल’’

रविवार, 17 मई 2015

व्यंग्य- पशुधन पर मंथन


व्यंग्य- पशुधन पर मंथन

 कहते हैं देश में पशुधन की कमीं हो रही है | लोग आजकल दूध और मांस खाना पीना पसंद करते हैं पर पशुधन रखना नहीं हैं | सरकारसवाल तो यहां तक आ पहुंचा है किलोगों से पूछों |
‘’आपने ऊँट या गधा देखा है |’’ वे साफ़ चट्ट मूंछों पर हाथ फेर कहते हैं –‘’ वर्षों पहले देखा था | जब हमारे कस्बे के करीबी जंगल में इनके पालक इन्हें चराने लाते थे |
बड़ा चिंतनीय प्रश्न है साहब | पशुधन घाट रहे हैं , मगर दुग्ध उत्पादन बढ़ रहा है |वैज्ञानिक युग है | क्या असली या नकली | बस पीजिए और मस्त होइये |
यह तो देश की रूपरेखा रही | अब थोडा हमारे नगर की तरफ आइये | यहाँ कोई दर्शनीय स्थान या तीर्थ स्थल नहीं है और न ही किसी भी प्रकार की गोस्त मंडी | और नहीं राजनीति के बड़े घोटाले बाजों का निवास स्थान | रेलवे लाइन पर हाफंती ,खिचती दौड़ती नेरोगेज ट्रेन के सहारे तरक्की की छुक-छुक करता कस्बा |
देश में पशुधन की कमी पर चर्चा उठी है |हमारे कस्बे के पशु प्रेमी जो हाथी के दांत वाली प्रवृति के प्रेमी हैं ,ने अपने आवारा जानवरों को आवारा बनने के लिए छोड़ना शुरू कर दिया ताकि सनद रहे देश में भले ही पशुओं का अकाल आ जाए पर हमारे क़स्बे में उतने के उतने हैं | यहाँ भले ही रासायनिक या मिलावटी दूध भी उपलब्ध है | कहते हैं दूध का उत्पादन भरपूर हो रहा है |त्यौहार –पावनों में नकली मावा की सफ्लाई यहाँ से तय होती है | इतने के बाद भी यहाँ के लोग छुआरा टाइप के हैं | एकाध – दो कद्दू किस्म के कहीं दिख जाएं तो समझिए वे नगर के चहेते हैं | आज तक यहाँ के मोटापा घटाने वाले वर्जिश केन्द्रों को ग्राहकों की आक्सीजन नहीं मिली | जिससे वे जहां उगे वहीँ दम तोड़ कर दफ़न हो गए |
  भरपूर संख्या में पशुधन हमारे नगर में हैं| हो सकता है किआप प्रमाण पात्र मांग बैठे सच्चाई का | साहब इससे अच्छा प्रमाण पात्र क्या हो सकता है किवे दिन भर आवारागर्दी करते दिखाते हैं | सब्जी मंडी ,किराना व गल्ला मंडी ,दुकानों ,गली सड़क में मुंह मारते दिखाते है \ इन पशुदन की आवारगी का नजारा यह है किवे सड़क या गली में से ऐसे गुजरते हैं जैसे नारा लगाते आन्दोलनकारी | नेता की तरह हड़ताल पर बैठ जाते हैं | आप लाठीचार्ज करी या हाकागेंग बुलाइए , खुद में मस्त रहते हैं |
पसु मालिक खुश होते हैं अपने पशुधन को आवारगी कावाकर |बेचारे जानवर यहाँ-वहां मुंह मारकर पेट भर लेते हैं | सुबह –शाम दूध देते हैं |
शहर में धर्मावलम्बियों भी हैं |जो इन्हें रोज पुण्य कमाने के फेर में चारा खिलाते रहते हैं |
हमारे पड़ोस के शर्मा जी रोजाना एक-दो किलो घास इन पशुओं को खिलाते है | कहते हैं –‘’ इससे घर में धन-धान्य की वृध्दि होती है | ग्रहदोष, शांत रहते हैं |
इन पशुमालिकों पर कभी ग्रहदोष नहीं मंडराते | जो इन्हें मुफ्त के माल पर मुंह मारने हेतु आवारा बना देते हैं |
एक दिन हमने पडोश के आवारा बेटे के बाप का दुखड़ा सुनकर बोए –‘’ ‘’ यार बेटा आवारा हुआ तो परेशान हो गए | मगर तुम्हारे पालतू पशु भी तो आवारगी करने में पीछे नहीं है | कृपया उन पर भी तो ध्यान दें | जो पशुओं के बगीचे खेत बाड़ी को रोजाना तहस – नहस करते फिरते हैं ||
वे बोले –‘’ जानवर व इंसान में यही तो फर्क है साब | पशु तो पशु है और इंसान इंसान है |
हमने कहा- ‘’ बिना संस्कार दी बेटा साथ देता है न पशु ‘’ वे बुरा सा मुंह बना कर चल दी |
कई मर्तबा डेंजरस मोड़ व ठिकाने पर रोड ब्रेकर बनाने हेतु पीडब्लूडी को ज्ञापन सोंपा गया था पर पीडब्लूडी का हाल तो आपको मालूम है हर जगह कमीशनखोरी |
अंतत: लोगो ने थक हार कर ज्ञापन देना , आन्दोलन बंद कर दिया है उनका काम पशु बीच सड़क पर बैठकर कर देते हैं |हमने आवारा पशुओं की हरकतों की शिकायत उनके म्मालिक से की तो वे बोले – ‘’ जब पुलिस सर्कार पंचायत व नगर परिषद् व जनता परेशान नहीं हो रही तो आप क्यों | जानते हो मल्लू पूजन करने वालों को गोबर बेचता है जो लीपने के लिए ले जाते हैं |
पिछले हलषष्ठी पर्व पर बैंस के गोबर के चिट्ठे सड़क पर देखने को नहीं मिले थे | एक आवारा भैंस के पीछे चार –चार पांच लोग हाथ लगाए खड़े थे | इसी इन्जार में कि वह कब गोबर करे और ये झट से झेल लें
इधर लोगों का मानना है किपशुधन बढाने का सबसे अच्छा तरिका  यह है किउन्हें स्वच्छंद आवारगी करने दें |मौज करने दें ,मस्ती करने दें |
                 सुनील कुमार ‘’सजल’’

शनिवार, 16 मई 2015

लघुव्यंग्य – आधुनिक रक्षक


लघुव्यंग्य – आधुनिक रक्षक

मोहल्ले में एक लड़की को किसी बाहरी युवक ने छेड़ दिया | पास लड़कों से रहा न गया | वे उस पर टूट पड़े | जमकर मरम्मत कर डाली उसकी |उन्हीं लड़कों में गुण्डा टाइप दिखने वाला उस पर अपना गुस्सा उतारते हुए बोला –‘’ अबे स्साले तेरी हिम्मत कैसे हुई उससे छेड़छाड़ करने की, तेरे घर में बहिन बेटी भी हैं या नहीं ? तुझे मालूम होना चाहिए कि कोई उस पर नजर उठाकर देखने की  हिम्मत नहीं करता, सिवाय मेरे ....|
                 सुनील कुमार ‘’सजल’’

लघुव्यंग्य –दान – पुण्य


लघुव्यंग्य –दान – पुण्य

मैं उनके साथ सड़क किनारे खडा था |तभी एक कमजोर दृष्टिवाला भिखारी हमारे करीब आया ,भिक्षा माँगने लगा |उन्होंने झट से जेब में हाथ डाला, कहीं न चलने वाला कई जोड़ का दो नोट निकाला | उसके कटोरे में डाला | बोले- ‘’लो बाबा जी , दो का नोट है |’’
  भिखारी खुश होकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गया |
  अब वे मेरी ओर देखते हुए बोले- ‘’ आज उपवास है सोचा ऐसे दिन में तो दान कर दूं |’’ आगे कह रहे थे –‘’ फिर हम बाबू लोग तो रोज ही लोगो की गर्दन मरोड़ते रहते हैं कम से कम उपवास के दिन ही सही दान करके कुछ पुण्य कमा लें | इसी बहाने पाप कटते रहेंगे ...|’’
  मैं उनके चहरे को देखते हुए सोच रहा था,’’ जिसकी आदत ही गर्दन मरोड़ने की पद गई हो वह भला उपवास रहे या यज्ञ करवाए अपनी बदनीयत का पंजा दफ्तर ही क्यों कहीं भी फैलाने से नहीं चूकते जैसा कि आज भिखारी की भावना को भी ....|’’
               सुनील कुमार ‘’सजल’

शुक्रवार, 15 मई 2015

लघुव्यंग्य –अनुकरण


लघुव्यंग्य –अनुकरण
स्कूल की मार्निंग शिफ्ट थी | संस्था का एक मात्र चपरासी रामू आज सुबह से ही अपने हलक में शराब उड़ेल कर लड़खडाता हुआ संस्था में उपस्थित हुआ |प्राचार्य जी ने देखा तो गुस्से में तमतमा उठे | वे उस पर बरसते हुए बोले –‘’ नालायक , कल तो तू राशन खरीदने के लिए मुझसे सौ रुपया मांग रहा था और आज सुबह से दारू के लिए पैसे कहाँ से मांग लाया |
‘’साब ! कल शाम, मेरे घरमें आपने पीते हुए बोतल में जो छोड़ दी थी, उसे पीकर आया हूं |’’ रामू ने लडखडाते स्वर में प्रत्युत्तर दिया |
प्राचार्य जी तुरंत उसे वहीँ छोड़ कर अपने कक्ष की ओर बढ़ गए |
               सुनील कुमार ‘’सजल’

लघुव्यंग्य आदमी का चरित्र


लघुव्यंग्य आदमी का चरित्र

आसमान में उड़ रहे दो गिध्द आपस में बतिया रहे थे |
एक ने कहा-‘ यार ,देख नीचे | ये आवारा छोकरे पीली बिल्डिंग के आसपास मंडरा रहे हैं , जैसे हम लोग मरे जानवर को देखकर मंडराते हैं |लगता है कुछ गड़वड है |’’
‘ अबे तू भी बेवकूफ है |वो बिल्डिंग कन्याओं का स्कूल है | इसलिए छोकरे लड़कियों के टाक में यहाँ-वहां घूम रहे हैं |स्साले आदमी का भी कोई चरित्र नहीं है | कभी कुत्ते तोकभी सियार या गिध्द की तरह हो जाते हैं |जंतु कौम का चरित्र लेकर उनसे भी बदत्तर हो गए हैं |हे ईश्वर! रक्षा करना मासूम कन्याओं की |’’
एक लम्बी सांस लेते हुए दूसरे ने कहा |और दोनों लम्बी उड़ान दूर भोजन की तलाश निकल गए |

गुरुवार, 14 मई 2015

लघु व्यंग्य –मौके


लघु व्यंग्य –मौके
पडोसी प्रदेश में बसे राजनैतिक मित्र ने नेताजी को फोन किया |
‘’ सूना है, आपका क्षेत्र सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित हो गया है |’’
‘’ जी ,हां !’’
‘’राहत कार्यक्रम भी आवंटित हुए होंगे
‘’जी,हां!’’
‘’काम के बदले अनाज, राहत धन राशि कुल मिलाकर आप लोग चांदी काट रहे होंगे |’’
‘’ कहाँ यार ...सब गुड़गोबर है |’’
 ‘’क्यों?’’
‘’आजकल जिसकी सत्ता ,लाठी भी उसी के हाथ में होती है और दुधारू भैंस हकालने काम भी वही संभालता है , बाकी सब तो भैंस के बदन पर चर्बी से आयी चमक को ताकते हैं |’’
‘’ लेकिन हमारे यहाँ ऐसा  नहीं है सभी को बराबरी से मुंह मारने के मौके मिल रहे हैं |’’
‘’दरअसल आपके यहाँ जागरूक जनता के रहते के रहते सत्ता में एक ही पार्टी का वर्चस्व नहीं है जबकि हमारे यहाँ की जनता भेड चाल चलती है | जिस तरफ से बनावटी घास की मोहक सुगंध आयी उसी तरफ एक के पीछे एक चलने लगाती है | भले ही आगे साजिश की गहरी खाइयां हों ,नहीं देखती कभी | ‘’
स्थानीय नेता ने अपने सूखते गले से पीड़ा भरी आवाज में मन की भड़ास उगलते हुए कहा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’